पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी 37 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। जिसमें महज़ 5 सीटों पर जीत हासिल की थी। वो पांच सीटें आज़मगढ़, मुरादाबाद, संभल, रामपुर और मैनपुरी थी।
इनमें मैनपुरी को छोड़ दिया जाए तो आज़मगढ़ में मुस्लिम वोटर्स दूसरे नम्बर पर हैं बाक़ी संभल, मुरादाबाद, रामपुर तीनों सीटें मुस्लिम बाहुल्य हैं।
मैनपुरी से पिछली दफ़ा 2014 के लोकसभा चुनाव में जब मुलायम सिंह चुनाव लड़े थे उस वक़्त उन्होंने भाजपा उम्मीदवार को 3,64,666 वोटों से हराया था लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह महज़ 94,000 वोट से चुनाव जीते थे। यानी 2014 के मुक़ाबिल 2019 में जीत का अंतर एक चौथाई हो गया था। जबकि मैनपुरी मुलायम ख़ानदान का गढ़ कहा जाता है और ये सीट यादव बाहुल्य है। बावजूद इसके जीत का अंतर एक चौथाई हो गया था। समझ रहे हैं न?
इस चुनाव में मुलायम सिंह की बहू, भतीजा, नाती, पोता सब हारे थे। यानी अगर उन तीन मुस्लिम बाहुल्य सीट पर मुसलमानों ने सपा को वोट नहीं किया होता तो इनकी झोली में सिर्फ़ 2 सीट आनी थी।
ख़ैर, सपा-बसपा का जो सबसे मज़बूत वोट बैंक है वो मुसलमान ही है। बसपा के दलित वोटर्स भाजपा को वोट किये, सपा के यादव वोटर्स भाजपा को वोट किये लेकिन मुसलमान न बसपा को कभी छोड़ा ना सपा को चूंकि सेक्युलरिज़्म बचाने की ज़िम्मेदारी माशा अल्लाह हमेशा से हमारे कांधों पर रही है।
यूपी में सपा- बसपा की सरकार बनाने का हमेशा से यही गणित रहा है।
दलित+मुस्लिम = मायावती।
मुस्लिम+यादव = मुलायम सिंह।
यानी मुसलमानों के वोट के बिना ये साढ़े चार सौ साल में भी कभी सीएम नही बन सकते। बावजूद इसके अगर 20% आबादी वाला मुसलमान इनसे कहे कि आप उप-मुख्यमंत्री किसी मुस्लिम को बनाओ तो ये कहते हैं- मुसलमान मुंगेरी लाल के सपने देख रहे हैं।
यानी जो मुसलमान आपको वोट करके सीएम बनाये वो डिप्टी सीएम की बात करे तो मुंगेरी लाल का सपना हो गया? यानी मुसलमान सिर्फ़ आपको वोट दे भाजपा को हराने के लिये? और जो मुसलमान इनसे हिस्सेदारी की बात करता है ये उसे बीजेपी की बी टीम, बीजेपी एजेंट वही सन 57 की मुसलमानों को बेवक़ूफ़ बनाने वाली कहानी सुनाने लगते हैं।
इनके हिसाब से मुसलमान चुनाव ना लड़े। अपनी लीडरशिप की बात ना करे। कोई मुस्लिम क़यादत किसी प्रदेश में एक सीट पर चुनाव लड़ जाए तो ये उस पूरे प्रदेश में अपनी हार का जिम्मेदार उसको बताएंगे ये ख़ुद चाहे आधी सीट पर बीजेपी के लिए मददगार साबित हों।
2019 लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद से बीजेपी उम्मीदवार डॉ चंद्रसेन ने सपा प्रत्याशी और मुलायम सिंह के भतीजे अक्षय यादव को 28,781 वोटों से हराया था।
उस चुनाव में बीजेपी को 4,95,819 वोट मील थे। सपा को अक्षय यादव को 4,67,038 वोट मिले थे।
शिवपाल यादव जी को 91,868 वोट मील थे। इस सीट पर शिवपाल यादव ने सीधे-सीधे सपा उम्मीदवार और अपने भतीजे अक्षय यादव को चुनाव हराने और भाजपा को जिताने का काम किया था। लेकिन उस वक़्त किसी भी सपा नेता/कार्यकर्ता के मुंह में ज़बान नहीं थी कि वो शिवपाल सिंह यादव को भाजपा का एजेंट या उनकी पार्टी को बीजेपी की बी टीम कहे।
आप सोचिये शिवपाल सिंह की जगह AIMIM का कोई उम्मीदवार होता और उसकी वजह से सपा का उम्मीदवार चुनाव हारा होता तो?
(यह लेखक के अपने विचार है लेखक शाहनवाज अंसारी सोशल एक्टीविस्ट है)