इस फ्रेम में मौजूद हम दोनों इंटरनेशनल पॉलिटिक्स, यहूदी साजिश, विभिन्न तरह के गुरुकुल मामलात के एक्सपर्ट है, फर्क सिर्फ इतना है कि सबीना सोशल मीडिया से थोड़ा दूरी बना कर रखती है मेरी तुलना में।
फिलहाल यह लिख कर ले लीजिए कि चंद्रगुप्त ने कृषि बिल वापस लेने का काम असेम्बली चुनाव में हार की डर से नही लिया है। चुनावों में हार का रत्ती भर भय नही है चंद्रगुप्त को ।।
चंद्रगुप्त के भय की वजह वो विदेशी शक्तियां है जिनकी मदद से वो कुर्सी तक पहुंचा है और वो लोग ही इसको गिरा सकते हैं।
चंद्रगुप्त फिलहाल अपने बदनसीबी से इंटरनेशनल मोर्चे पर बहुत कमजोर है और वहां राहुल गांधी तेजी से बढ़त बनाये हुए हैं।
न्याय की सर्वोच्च मंदिर के देवगण पिछले 20 दिनों से लगातार एक के बाद एक चोट चन्द्रगुप्त पर किये जा रहे हैं, ये चोट लगने का पैटर्न वही है जैसा यूपीए-2 के टाइम कांग्रेस को लगा करता था, उसी पैटर्न पर अब हथौड़ा चंद्रगुप्त पर चले जा रहा है।
न्याय का सर्वोच्च मंदिर पिछले कई दशकों से जिओपॉलिटिक्स का अखाड़ा बना हुआ है, इंदिरा गांधी जी और इलाहाबाद उच्च न्यायालय वाला प्रकरण सबसे बड़ा गवाह है।
गुजरात 2002 दंगे मामला में जिस एसआईटी जांच से चन्द्रगुप्त बाइज्जत बरी हुए थे, उसी मामले में फिर से फसने जा रहे है, उसी डैमेज कंट्रोल करने हेतु यह एक म्यूच्यूअल डील की गई है कि यहां मुझे बचाओ मैं कृषि बिल वापस लेता हूं।
राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस पेगासस पर 27 अक्टूबर और फिर 29 अक्टूबर को किसान बिल पर ट्वीट, यह इशारा करता है कि एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल एक्टिविटी की जानकारी उन्हें है और किसान बिल रद्द होने जा रहे है उन्हें पूर्व जानकारी थी।
इसी पैटर्न पर अखिलेश यादव का एक बयान है शायद 26 या 25 अक्टूबर का जहां वो कहते है कि चुनाव से पहले कृषि बिल रद्द होंगे।
राहुल गांधी व अखिलेश यादव कोई भविष्यवक्ता तो है नही लेकिन दोनों में एक पॉइंट कॉमन है कि अमरीका की एक गुरुकुल टीएनसी के कर्ताधर्ता पिछले अक्टूबर में दोनों से मिले है, यही लोग कपिल सिब्बल से मिले है उन्ही दिनों, और यही लोग सर्वोच्च मंदिर के देवगणों से भी दिल्ली के मशहूर जिमखाना क्लब की एक नाईट पार्टी में मिले हैं।
और यह टीएनसी नाम का गुरुकुल चन्द्रगुप्त के खास विरोधी गुट का है, जिनकी जीत फिलहाल यही है कि चंद्रगुप्त ने सरेंडर कर दिया।।
अभी आने वाले दिनों में चंद्रगुप्त को और भी कई यूटूर्न मास्टरस्ट्रोक लेने होंगे,, कुल मिला कर अभी तो भक्तों को और जलील होना है। लेकिन भक्त जलील होने के बाद भी यूपी चुनाव में जीत के लड्डू अवश्य खाएंगे।
नोट:–चन्द्रगुप्त के सरेंडर होने का यह मतलब नही है कि वो यूपी हार रहे है, वो हर हाल में यूपी जीतेंगे। गुरुकुल को यूपी पंजाब की हार जीत में कोई इंटरेस्ट नहीं, उनको जो हासिल करना था वो कर चुके।
(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक नवनीत चतुर्वेदी जिओ पॉलिटिक्स के लेखक हैं)