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इस देश में मुसलमान ना तो किरायेदार हैं, ना कब्ज़ाधारी और ना ही घुसपैठिया, मुसलमान इस देश का उतना ही मालिक है जितने अन्य समुदाय हैं: वसीम अकरम त्यागी

एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। वायरल वीडियो में एक भगवाधारी महिला बिरयानी बेचने वाले एक दुकानदार को धमकाते हुए कह रही है, “ये उत्तर प्रदेश है, ये इनके (मुसलमानों के) बाप की नगरी नहीं, बाबा (योगी) की नगरी है।”

बीते कुछ वर्षों में भाजपा के अनुषांगिक हिंदूवादी संगठनों द्वारा मुस्लिम दुकानदारों की ऐसी मोरल पुलिसिंग की घटनाएं होती रही हैं। मुस्लिम दुकानदार अपनी रोज़ी रोटी कमाने की वजह इस तरह की मोरल पुलिसिंग का कोई जवाब भी नहीं देते, बस खामोशी से अपनी दुकान बंद कर लेते हैं।

हालांकि इस देश में ऐसा कोई क़ानून नहीं है, लेकिन फिर भी भाजपा के अनुषांगिक संगठनों की गुंडई की वजह से दुकानें बंद रखने के लिए मजबूर किया जाता है।

खैर मैं उस महिला के कथन पर आता हूं। मैडम! उत्तर प्रदेश, प्रदेश वासियों का है, किसी के बाप का नहीं है। वह जितना आपके बाप का है, उतना ही उनके बाप का है जिनकी दुकान बंद कराकर तुमने धर्म सेवा करने का मुगालता पाला है। इसी वीडियो में मोहतरमा उस दुकानदार से सवाल करती हैं कि योगी का सम्मान करते हो कि नहीं। मैं मुसलमानों की तरफ से इस सवाल का जवाब बड़ी ही ज़िम्मेदारी से दे रहा हूं। मुसलमान योगी आदित्यनाथ का उतना ही सम्मान करते हैं, जितना योगी आदित्यनाथ, मुसलमानों का सम्मान करते हैं।

अगर इस देश की क़ानून व्यवस्था निष्पक्ष हो जाए तो धर्म का चौला औढ़कर ‘दूसरे’ लोगों की दुकानें बंद कराने वाले जेल की सलाखों के पीछे मिलें। लेकिन विडंबना है कि निष्पक्ष होने का दावा करने वाली भारतीय क़ानून व्यवस्था कहीं ना कहीं बहुसंख्यकवाद से ग्रस्त नज़र आती है।

अब मैं दूसरे मुद्दे पर आता हूं, अक्सर देखा गया है कि कुछ लोग मेरे टाइमलाइन पर आकर मुसलमानों के ख़िलाफ अनर्गल टिप्पणियां करते हैं। उन्हें घुसपैठिया, कब्ज़ाधारी, पाकिस्तानी जैसी गालियां देते हैं। मैं इस देश के तमाम मुसलमानों की तरफ इस तरह की मानसिकता वाले तमाम नफ़रती भौंपुओं से कहना चाहता हूं, कि इस देश में मुसलमान ना तो किरायेदार हैं, ना कब्ज़ाधारी और ना ही घुसपैठिया। मुसलमान इस देश का उतना ही मालिक है जितने अन्य समुदाय हैं। अगर कोई इस मुगालते में है कि वो इस देश से मुसलमानों को भगा देगा, तो वह अपनी पूरी ताक़त लगाकर सबसे पहले मुझे इस देश से निकालकर दिखाए, उसे उसकी औक़ात पता चल जाएगी।

मुसलमानों ने इस वतन को आज़ाद कराने के लिए बलिदान दिए, जेल काटी, अंग्रेज़ों की यातनाएं सहीं, और आज़ादी के बाद इस देश को आधूनिक बनाने में नुमायां किरदार निभाया है। तो यह इसलिए नहीं था कि कोई भी ऐरा ग़ैरा रत्तू खैरा उन्हें यहां से निकल जाने की धमकी देगा। धमकी देने वाले नफ़रती जाॅम्बी कान खोलकर सुन लें मुसलमान कहीं जाने वाले नहीं हैं।

वह इस देश में अपने दम पर है, किसी सरकार, किसी संगठन किसी नेता के रहमो करम पर नहीं है। इसलिए याद रखियेगा।

इसी गली के है खाक से यहीं खाक अपनी मिलाएंगे

ना बुलाए आपके आए हैं ना निकाले आपके जाएंगे!

(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक वसीम अकरम त्यागी वरिष्ठ पत्रकार है)

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