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उदयपुर फाइल्स’ के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंची जमीयत उलमा-ए-हिंद, बोले- यह नफरत फैलाने वाली फिल्म है

‘उदयपुर फाइल्स’ के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंची जमीयत उलमा-ए-हिंद, बोले- यह नफरत फैलाने वाली फिल्म है

उदयपुर की घटना पर आधारित फिल्म “उदयपुर फाइल्स” का ट्रेलर जारी होते ही इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग ज़ोर पकड़ने लगी है। इस फिल्म के ट्रेलर में नूपुर शर्मा का वह विवादित बयान भी शामिल है, जिसकी वजह से न केवल देश में सांप्रदायिक तनाव था बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को भी नुक़सान पहुँचा था और हमारे अन्य देशों से संबंधों पर भी नकारात्मक असर पड़ा था।

इसी के चलते भारतीय जनता पार्टी ने नूपुर शर्मा को पार्टी से निष्कासित किया था।
फिल्म के ट्रेलर में पैग़म्बर मुहम्मद स0अ0व0 और उनकी पवित्र पत्नियों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की गई है, जो देश के अमन-चैन को बिगाड़ सकती है। फिल्म में देवबंद को कट्टरवाद का अड्डा बताया गया है और वहां के उलमा के विरुद्ध ज़हर उगला गया है।

यह फिल्म एक विशेष धार्मिक समुदाय को बदनाम करती है, जिससे समाज में नफ़रत फैल सकती है और नागरिकों के बीच सम्मान तथा सामाजिक सौहार्द्र को गहरा नुक़सान हो सकता है।

फिल्म में ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ जैसे मामलों का भी उल्लेख है, जो वर्तमान में वाराणसी की ज़िला अदालत और सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं। ये बातें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 में दिए गए नागरिक अधिकारों का उल्लंघन हैं।

फिल्म को सेंसर बोर्ड से प्रमाणपत्र जारी होने के बाद 11 जुलाई शुक्रवार को रिलीज किया जाना है। इस पर रोक लगाने के लिए जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने दिल्ली के साथ-साथ महाराष्ट्र और गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इस याचिका में केंद्र सरकार, सेंसर बोर्ड, जॉनी फायर फॉक्स मीडिया प्रा. लि. और एक्स कार्प्स को पक्षकार बनाया गया है, जो फिल्म के निर्माण और वितरण से जुड़े हैं।

संविधान की धारा 226 के अंतर्गत दाखिल की गई यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील फ़ुजैल अय्यूबी द्वारा तैयार की गई है, जिसका डायरी नंबर है:
Diary No. E-4365978/2025

याचिका में कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग करते हुए फिल्म में ऐसे दृश्य दिखाए गए हैं जिनका इस्लाम, मुसलमानों और देवबंद से कोई लेना-देना नहीं है। ट्रेलर से साफ़ झलकता है कि यह फिल्म मुस्लिम-विरोधी भावनाओं से प्रेरित है।

मौलाना अरशद मदनी ने इस नफरत फैलाने वाली फिल्म पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह फिल्म देश में अमन और सांप्रदायिक सौहार्द को आग लगाने के लिए बनाई गई है। इसके ज़रिए एक वर्ग विशेष, उसके उलमा और धार्मिक शैक्षणिक संस्थानों की छवि को नुक़सान पहुँचाने की एक साज़िश रची गई है। उन्होंने आश्चर्य जताया कि सेंसर बोर्ड ने अपने सभी नियम-कायदों को दरकिनार करते हुए इस फिल्म को कैसे मंजूरी दे दी।

मौलाना ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस फिल्म के पीछे कुछ ताक़तें और लोग हैं जो एक विशेष समुदाय की छवि को खराब कर देश की बहुसंख्यक आबादी के बीच उनके खिलाफ ज़हर भरना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि सेंसर बोर्ड ने फिल्म को पास कर एक आपराधिक साज़िश में भागीदारी की है। ऐसा लगता है कि यह बोर्ड भी अब सांप्रदायिक शक्तियों के हाथों की कठपुतली बन गया है।

उन्होंने आगे कहा कि यह पहली बार नहीं है, इससे पहले भी सेंसर बोर्ड कई विवादास्पद फिल्मों को मंजूरी दे चुका है, जिससे साफ़ होता है कि एक बड़ी साज़िश के तहत इस प्रकार की फिल्मों का निर्माण किया जा रहा है।

मौलाना मदनी ने कहा कि सेंसर बोर्ड ने सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 की धारा 5B और उसके तहत 1991 में जारी सार्वजनिक प्रदर्शन की शर्तों का उल्लंघन किया है।

फिल्म का 2 मिनट 53 सेकंड का जो ट्रेलर जारी किया गया है, वह ऐसे डायलॉग्स और दृश्यों से भरा है जो देश में सांप्रदायिक सौहार्द को नुक़सान पहुँचा सकते हैं।

फिल्म में 2022 में उदयपुर में हुई एक घटना को आधार बनाया गया है, लेकिन ट्रेलर से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि फिल्म का मकसद एक विशेष धार्मिक समुदाय को नकारात्मक और पक्षपाती रूप में पेश करना है, जो उस समुदाय के लोगों के सम्मान के साथ जीने के मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।

फिल्म में न केवल ज्ञानवापी मस्जिद जैसे संवेदनशील मामले का ज़िक्र है बल्कि ट्रेलर में वही आपत्तिजनक सामग्री है जो नूपुर शर्मा के विवादास्पद बयान में थी, जिस कारण देशभर में सांप्रदायिक तनाव फैला था और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की छवि को भारी नुकसान पहुँचा था।

मौलाना मदनी ने अंत में कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश है, जिसका संविधान सभी नागरिकों को बोलने की आज़ादी, खाने-पीने, पहनने और अपने धर्म पर अमल करने की पूरी आज़ादी देता है। लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने की अनुमति नहीं है।

इसीलिए हमने इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए क़ानूनी लड़ाई का रास्ता चुना है और सेंसर बोर्ड को भी इसमें एक पक्षकार बनाया है, क्योंकि उसका अपराध उन लोगों से कम नहीं है जिन्होंने इस घृणित फिल्म को बनाया है।

(यह जमीअत उलेमा ए हिंद द्वारा ज़ारी प्रेस रिलीज़ है)

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