जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति की एक अत्यंत महत्वपूर्ण सभा आज नई दिल्ली के आईटीओ स्थित मदनी हॉल में जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी की अध्यक्षता में आयोजित हुई, जिसमें वक्फ संशोधन अधिनियम 2025, उत्तराखंड में मदरसों के विरुद्ध सरकारी कार्रवाई, समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन और फिलिस्तीन में नरसंहार जैसे वर्तमान समय के ज्वलंत मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई और कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए।
इसके साथ ही नए सदस्यता अभियान की तिथि में भी विस्तार किया गया। कार्यकारी समिति की सभा में जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति के सदस्यों और देश भर से विशेष आमंत्रित लोगों ने भाग लिया और कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
सभा में विशेष रूप से वक्फ संशोधन अधिनियम की कमियों और इसके पीछे के उद्देश्यों पर घंटों चर्चा हुई। सबसे पहले वक्फ की सुरक्षा को लेकर जमीअत उलमा-ए-हिंद के संघर्ष पर आधारित रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इसके बाद जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने इस कानून पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारा मानना है कि यह कानून देश के संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है और भारत के संविधान के विरुद्ध है, जो बहुसंख्यकों का वर्चस्व स्थापित करने के लिए लाया गया है।
यह सिर्फ कानूनी मुद्दा नहीं बल्कि न्याय और सिद्धांत का मामला है। हमने इस तरह के उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ पहले भी लड़ाई लड़ी है और हम भविष्य में भी लड़ेंगे। इस देश की बुनियाद जिन सिद्धांतों पर रखी गई थी, वह समानता, न्याय और स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। ऐसा महसूस होता है कि आज इन बुनियादों को हिलाने का प्रयास किया जा रहा है।
मैं चाहता हूं कि मेरे यह शब्द न केवल सुने जाएं, बल्कि महसूस भी किए जाएं। यह मेरे समुदाय की पीड़ा और भावनाओं की अभिव्यक्ति है। उम्मीद है कि देश का नेतृत्व, मीडिया और आम जनता इस आवाज को सुनेंगे और इस पर गंभीरता से विचार करेंगे।
इस अवसर पर जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति ने वक्फ अधिनियम के खिलाफ प्रस्ताव पारित करते हुए कहा कि यह अधिनियम भारतीय संविधान के कई अनुच्छेदों 14, 15, 21, 25, 26, 29 और 300-ए के विरुद्ध है। इसका सबसे नुकसानदायक पहलू ‘वक्फ बाय यूजर’ की समाप्ति है, जिससे ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, उनकी संख्या चार लाख से अधिक है। केंद्रीय व0क्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना, धार्मिक मामलों में खुला हस्तक्षेप और अनुच्छेद 26 का स्पष्ट उल्लंघन है। यह कानून बहुसंख्यकों के वर्चस्व का प्रतीक है, जिसका हम कठोरता से विरोध करते हैं।
कार्यकारी समिति यह स्पष्ट करती है कि वर्तमान सरकार संविधान की भावना और संवैधानिक समझौते का उल्लंघन कर रही है। एक पूरे समुदाय को हाशिए पर डालने, उनकी पहचान मिटाने और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का प्रयास किया जा रहा है। सभा सरकार से मांग करती है कि वक्फ अधिनियम 2025 को तुरंत वापस लिया जाए। वक्फ इस्लामी कानून का एक मौलिक हिस्सा है और एक धार्मिक इबादत है।
इसमें ऐसा कोई भी संशोधन स्वीकार्य नहीं है जो इसके धार्मिक चरित्र और शरई आधार को प्रभावित करे। संशोधन केवल प्रशासनिक सुधार के लिए होने चाहिए।
कार्यकारी समिति सरकार और विपक्ष के भ्रामक बयानों की निंदा करती है तथा मीडिया में फैलाए जा रहे दुष्प्रचार के खिलाफ सही स्थिति प्रस्तुत करने के लिए हर संभव कदम उठाएगी।
यह भी स्पष्ट किया गया कि शांतिपूर्ण विरोध एक संवैधानिक अधिकार है। विरोध प्रदर्शनों को रोकना, कानूनी कार्रवाई करना या हिंसा का सहारा लेना निंदनीय है, जबकि विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा का सहारा लेना भी निराशाजनक है। ऐसे तत्व वक्फ आंदोलन को कमजोर कर रहे हैं।