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दरगाह अजमेर शरीफ को बदनाम करने के उद्देश्य से बनाई गई फिल्म पर मौलाना महमूद मदनी ने प्रतिबंध लगाने की मांग की

जमीअत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने ‘अजमेर 92’ के नाम से रिलीज होने वाली फिल्म को समाज में दरार पैदा करने का एक प्रयास बताया है. उन्होंने कहा कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक और लोगों के दिलों पर राज करने वाले ’सच्चे सुल्तान’थे।

एक हजार वर्षों से आप इस देश की पहचान हैं और आपका व्यक्तित्व. शांतिदूत के रूप में जाना जाता है. उनके व्यक्तित्व का अपमान या अनादर करने वाले स्वयं अपमानित हुए हैं।

मौलाना मदनी ने कहा कि वर्तमान समय में समाज को विभाजित के बहाने खोजे जा रहे हैं और आपराधिक घटनाओं को धर्म से जोड़ने के लिए फिल्मों एवं सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा है, जो निश्चित रूप से निराशाजनक है और हमारी साझी विरासत के लिए गंभीर रूप से हानिकारक है।

मौलाना मदनी ने कहा कि अजमेर में घटित हुई घटना का जो रूप बताया जा रहा है, वह पूरे समाज के लिए बेहद दुखद और घिनौनी हरकत है। इसके विरुद्ध बिना किसी धर्म और संप्रदाय के सामूहिक संघर्ष की आवश्यकता है, लेकिन यहां तो समाज को विभाजित कर इस दुखद घटना की गंभीरता को समाप्त करने की कोशिश की जा रही है। इसलिए मेरी केंद्र सरकार से अपील है कि ऐसी फिल्म पर प्रतिबंध लगाया जाए और जो लोग समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें हतोत्साहित किया जाए।

मौलाना मदनी ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी एक बहुत बड़ा वरदान है और किसी भी लोकतंत्र की मूल शक्ति है, लेकिन इसकी आड़ में देश को तोड़ने वाले विचारों और धारणाओं को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है और न ही यह हमारे देश के लिए लाभकारी है। वर्तमान समय में जिस तरह से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को निशाना बनाने के लिए फिल्मों, डाक्यूमेंट्री आदि का सहारा लिया जा रहा है, वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिलकुल विरुद्ध है और एक स्थिर राज्य के संकल्प को कमजोर करने वाला है।

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