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अब न कहें कि यूलियस स्ट्राइकर अपने अखबार से यहूदियों के जनसंहार का आवाह्न करता था क्योंकि वह मर चुका है

साल है 1923 और जर्मनी में एक नया अख़बार शुरू हुआ है। अख़बार का नाम है दर स्ट्रूमर (हमलावर)। इसके संपादक का नाम यूलियस स्ट्राइकर है। यह जर्मनी हिटलर की जर्मनी नहीं है। यहां अभी यहूदियों को बराबरी का अधिकार है। धीरे धीरे इस अखबार की लोकप्रियता बढ़ी और इसके साथ ही साथ हिटलर भी जर्मनी में एक बड़े नेता के तौर पर देखा जाने लगा। हिटलर की बढ़ती ताकत के साथ यहूदियों के अधिकार भी घटे।

आखिर अखबार में ऐसा क्या छपता था कि इसकी लोकप्रियता इतनी तेज़ी से बढ़ रही थी? अख़बार में सिर्फ़ यहूदियों के लिए नफरत और हिंसा की खबरें छपती थीं। दस साल बाद, 1933 में, हिटलर ने जब सत्ता पाई तो स्ट्राइकर का अखबार लगभग एक मिलियन लोग पढ़ने लगे। इसे चौराहों पर रखा जाता था कि आम जर्मन इसे पढ़ें और यहूदियों से नफरत करें। अब युलियस को सरकारी एड और पैसे की कोई कमी नहीं थी।

आपको शायद यकीन न हो लेकिन हिटलर के राज की शुरूआत में कुछ यहूदियों ने स्ट्राइकर पर केस किया और कोर्ट ने स्ट्राइकर से जुर्माना भरने को भी कहा। मगर धीरे धीरे न ही जर्मनी में कोर्ट आज़ाद बचे और न ही कोई रसूकदार यहूदी।

स्ट्राइकर यहूदियों के खिलाफ़ हिंसा की प्रशंसा करता था। जर्मन मर्दों को कत्ल के लिए उकसाता था। वह कहता था कि यहूदी मर्द साजिशन जर्मन औरतों को फंसा रहे हैं। उसने जर्मन रेशल प्यूरिटी लॉ की वकालत और उसकी ही मांग के चलते, नाज़ी जर्मनी में वो कानून आए जिन्हें भारत में “लव जिहाद” और “लैंड जिहाद” कहा जाता है। वो अपनी रिपोर्ट में अल्पसंख्यक मर्दों को हिंसक, लालची, बलात्कारी और देश के विरूद्ध षड्यंत्र करने वालों के रूप में दिखाता था। वह इसे यहूदियों की बुनियादी धार्मिक शिक्षा से जोड़ता था। हर दिन पहले पन्ने पर कोई ऐसी खबर छापता था जहां किसी यहूदी मर्द ने कोई हिंसा की हो। वह विजुअल्स का बहुत ही क्रूर इस्तेमाल करता था।

कुछ साल बाद, दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ और स्ट्राइकर ने होलोकॉस्ट का प्रोपोगंडा छापा। उसने कहा कि यहूदी कट्टरपंथी युद्ध भड़का रहे हैं। उसने अपने लेखों में जनसंहार की वकालत की। यह बात आप सब जानते हैं कि हिटलर वह युद्ध हार गया। स्ट्राइकर की जर्मनी छोड़कर भागने की कोशिश नाकाम साबित हुई। वह पकड़ा गया।

पत्रकार स्ट्राइकर का क्या हुआ? स्ट्राइकर का अख़बार बैन कर दिया गया। स्ट्राइकर को न्यूरमबर्ग ट्रायल में “मानवता के विरूद्ध जुर्म” के लिए दोषी पाया गया। वो दुहाई देता रहा कि उसने हिंसा और युद्ध में कोई डायरेक्ट रोल अदा नहीं किया है। मगर किसी ने नहीं कहा कि यह केवल वैचारिक मदभेद है। 1946 में उसे फांसी पर लटकाया गया। वो आखरी सांस तक नाज़ी रहा। उसके आखरी शब्द थे, “हेल हिटलर।”

खैर, अब स्ट्राइकर मर चुका है और मैं इस लेख के लिए बहुत शर्मिंदा हूं।

(यह लेखक के अपने विचार है लेखक अलीशान जाफरी स्वतंत्र पत्रकार है।)

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