नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ हो रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शन को खत्म करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा बेगुनाह युवाओं को यूएपीए के तहत जेल में बंद किया गया था।
जेल में बंद युवाओं पर दिल्ली दंगों के भी आरोप लगे थे इन आरोपों का सामना छात्र नेता एवं सोशल एक्टीविस्ट उमर खालीद भी कर रहे है।
उमर खालीद पिछले 14 महीने से जेल में बंद है उन्होंने जेल से एक खत लिखा है जिसके जरिए वह अपनी पीढ़ा जाहिर कर रहे है।
उमर खालीद का कहना है कि पिछले 14 महीने से हमें जेल में बंद कर रखा है लेकिन अभी तक हमारा मुकदमा शुरू नही हुआ है। जिसके कारण अभी तक हमें अपनी बेगुनाही साबित करने का मौका नही मिला है।
उमर के खत मे लिखा है कि अगर हम आजाद होते ओर जेल के बाहर होते तो आज हम बिना किसी भेदभाव के जरूरतमंद लोगों तक मदद पहुंचा रहे होते। केन्द्र सरकार ने पिछले साल महामारी का फायदा उठाकर हमें जेल में ठूंस दिया था।
उमर खालीद लिखते है कि जब मुझें कोरोना वायरस हुआ तो मैने पढ़ा की कोविड-19 प्रोटोकाल के तहत आपातकालीन पैरोल मिल सकती है लेकिन उसमें लिखा था यह यूएपीए वाले कैदियों पर लागू नही होंगा।
द क्विंट के अनुसार उमर लिखते है कि “ऐसे लगता है जैसे जेल की कोठरी सिकुड़ रही है। घुटन और क्लेस्ट्रोफोबिया हमारे मन और शरीर को अपने कब्जे में लेता जा रहा है, मुझे घरवालों से बात करने के लिए सप्ताह में दो बार मिलने वाले पांच मिनट के फोन कॉल या दस मिनट के वीडियो कॉल का बेसब्री से इंतजार रहता है। लेकिन जैसे ही हम बातें करना शुरू करते हैं, टाइमर बंद हो जाता है और कॉल कट जाता है।
यह खत उमर खालीद द्वारा लिखे गए चंद अल्फाज है असली दर्द तो वह है जो उमर बता नही पा रहे है। और ऐसे सैकड़ो कैदी है जो अपनी रिहाई तो छोड़ो मामले की सुनवाई का वर्षो से इंतज़ार कर रहे है।