सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका आजकल चर्चा का विषय बनी हुई हैं जिसमें कहा गया है कि, धर्म परिवर्तन करके मुसलमान और ईसाई बन रहें दलितों का एससी का दर्ज़ा बरकरार रहना चाहिए।
यह मामला कोर्ट में 18 साल से लंबित हैं, करीब एक महीने पहले न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अगुवाई वाली पीठ ने 30 अगस्त को केंद्र से इस मांग को उठाने वाली याचिकाओं पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील पेश करते हुए कहा कि, अगर कोई दलित, इस्लाम या ईसाई धर्म अपनाता हैं तो उसका अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा छीन लिया जाना चाहिए।
आपको बता दें कि, 1950 का अनुसूचित जाति आदेश मुसलमान और ईसाई दलितों को SC लिस्ट से बाहर रखता है. जबकि दलित द्वारा सिख और बौद्ध धर्म अपनाने पर उसका एससी का दर्ज़ा बरकरार रहता हैं।
इस मामले पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का कहना हैं कि, एक तरफ़ मोदी सरकार पसमांदा मुसलमानों से मोहब्बत के दावे करती है और दूसरी ओर उन्हें लिस्ट से महदूद रखती है. सरकार ने कोर्ट से कहा कि भारतीय मुसलमान/ईसाइ ‘विदेशी’ हैं. दिल की बात ज़ुबान पर आ ही गयी।
ओवैसी आगे कहते हैं कि, यह आदेश न सिर्फ़ मुसलमान और ईसाई दलितों की बराबरी के हक़ का मसला है बल्कि दलितों के मज़हब की आज़ादी के हक़ के खिलाफ़ भी है. इस आदेश के ख़िलाफ़ मैंने संसद में कई बार आवाज़ उठाई है. सरकार चाहे कुछ भी कहे, हम भारतीय हैं और भारत में ही इंसाफ़ ले कर रहेंगे।