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1947 से सभी राजनीतिक दलों की नीति रही है कि मुसलमानों को अपने पैरों पर खड़ा नहीं होने दिया जाए: मौलाना अरशद मदनी

जमीअत उलमा दिल्ली व हरियाणा के ज़िला अध्यक्ष, महासचिव और केन्द्रीय सदस्यों का एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम मस्जिद झील प्याऊ, आई.टी.ओ. में आयोजित किया गया, जिसको संबोधित करते हुए जमीअतम उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया हैं कि जमीअतम उलमा-ए-हिंद आधुनिक शिक्षा की कदापि विरोधी नहीं है।

कौम को जहां आलिमों और फाज़िलों की आवश्यकता है वहीं उसे डाक्टरों, इंजीनीयरों और वैज्ञानिकों की भी आवश्यकता है लेकिन इसके साथ साथ वह धार्मिक शिक्षा को अनिवार्य समझती है. उन्होंने कहा कि हमारा पक्ष, हमारी राजनीति, हमारा प्रदर्शन पूरी तरह से हमारे बड़ों की प्रेरणा का प्रतीक है और हम उन्हें अपना मार्गदर्शक मानते हैं। उनकी पद्धति से हट कर कोई नई पद्धति अपनाना हम संगठन के लिए लाभकारी नहीं समझते।

मौलाना मदनी ने ज़ोर देकर कहा कि हमारे बड़े भी आधुनिक शिक्षा के विरोधी नहीं थे, हालांकि यह सब के सब इस्लामी शिक्षा में निपुण थे। देश की आज़ादी के लिए उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ लम्बे समय तक संघर्ष किया और जान-माल का बलिदान भी दिया, मगर वास्तविकता यह है कि यह अंग्रेज़ी शिक्षा के खिलाफ नहीं थे, इसलिए जब देश आज़ाद हुआ तो जमीअतम उलमा-ए-हिंद के नेतृत्व ने मदरसों और स्कूलों की स्थापना के लिए नियमित रूप से राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाया क्योंकि वह इस बात को समझते थे कि कौम का शिक्षित होना आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि हमारा भी पक्ष यही है कि आधुनिक शिक्षा भी हमारे लिए अनिवार्य है, लेकिन इसके साथ साथ धार्मिक शिक्षा को इसलिए जरूरी समझते हैं कि अगर हमारा बच्चा डाक्टर अंजीनर बन गया है तो उसे इतनी धार्मिक शिक्षा तो होनी ही चाहिए कि वह अंतिम समय में कलिमा पढ़ सके। उन्होंने इस बात पर गहरा दुख प्रकट किया कि आधुनिक शिक्षा के संबंध में दक्षिण भारत के मुसलमानों में जो चेतना है वह उत्तर भारत के मुसलमानों में नहीं है। हम शादी ब्याह और अन्य अर्थहीन चीज़ों पर तो लाखों रुपये खर्च कर देते हैं परन्तु स्कूल और काॅलेज खोलने के बारे में नहीं सोचते। ऐसा नहीं है कि दक्षिण की तुलना में उत्तर के मुसलमानों के पास पूंजी की कमी है, वास्तव में उनके अंदर चेतना नहीं है जिसको जागृत करने की अब बहुत ज़रूरत है। मौलाना मदनी ने कहा कि हालिया दिनों में मुस्लिम लड़कियों से हिंदू लड़कों के विवाह की दुखद घटनाएं सामने आई हैं, यह अकारण नहीं है बल्कि सांप्रदायिकों का एक टोला योजनाबद्ध तारीक़े से इसका समर्थन कर रहा है कि मुस्लिम बच्चियों को धर्मद्रोही बनाया जाए।

उन्होंने आगे कहा कि इसको लेकर सांप्रदायिकें ने जो दुष्प्रचार किया उसके दबाव में लौ-जिहाद की स्वनिर्मित परिभाषा के खिलाफ भाजपा शासिसत राज्यों में कानून भी बना दिया गया, लेकिन इसको लोगू करने में घोर भेदभाव बरता गया। अगर किसी मुस्लिम लड़के ने इस प्रकार की हरकत की तो उसके पूरे परिवार को उठाकर जेल भेज दिया गया, परन्तु जब इसी प्रकार की हरकत किसी हिंदू लड़के ने की तो कोई कार्रवाई नहीं हुई बल्कि प्रशासन के लोगों ने उसका समर्थन किया। मौलाना मदनी ने कहा कि इसका तोड़ यह है कि मुसलमान लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग शैक्षणिक संस्थान खोलें, जहां सुरक्षित धार्मिक वातावरण में क़ौम के बच्चे और बच्चियां शिक्षा प्राप्त कर सकें।

उन्होंने कहा कि अगर अभी कुछ न किया गया तो दस साल बाद यह स्थिति विस्फोटक भी हो सकती है। अपनी बात को जारी रखते हुए उन्होंने यह भी कहा कि आप इस आशा में कदापि न रहें कि सरकारें आपके लिए कुछ करेंगी, क्योंकि 1947 से ही सभी राजनीतिक दलों में घुसे हुए सांप्रदायिक लोगों की सर्वसम्मत नीति यह है कि मुसलमानों को अपने पैरों पर खड़ा न होने दें, यही कारण है कि आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी मुसलमान देश का सबसे पिछड़ा वर्ग है। यहां तक कि वह हर क्षेत्र में दलितों से भी पीछे हैं।

मौलाना मदनी ने कहा कि आज़ादी के बाद शासकों की एक निश्चित नीति के अंतर्गत मुसलमानों को शैक्षिक और आर्थिक क्षेत्र से बाहर कर दिया गया। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट इसकी गवाही देती है इसलिए अब समय आगया है कि मुसलमान पेट पर पत्थर बांध कर अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाएं।

उन्होंने कौम के प्रभावशाली लोगों से यह अनुरोध किया कि वह अधिक से अधिक लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग ऐसे स्कूल और काॅलेज बनाएँ जहां वह धार्मिक वातावरण में आसानी से शिक्षा प्राप्त कर सकें।
आज मुसलमानों में पढ़े लिखे लोगों की कमी नहीं है, उनमें शिक्षा प्राप्त करने का चलन बढ़ा है। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मुसलमानों ने जीवित रहने और आगे बढ़ने का साहस नहीं खोया है, लेकिन आज भी उत्तर भारत में अच्छे और गुणवत्तापूर्ण शिक्षण संस्थानों की कमी है इसलिए मैं कहता हूं कि आधुनिक शिक्षा के लिए आधुनिक स्कूल और काॅलेज भी जरूरी हैं। आपके पास साधन नहीं हैं, कोई बात नहीं, किसी झोंपड़ी में बच्चियों के लिए स्कूल खोल दें, आप अगर ऐसा करेंगे तो यह प्रमाणित कर देंगे कि आपके अंदर राष्ट्रीय चोतना है और आप एक जिंदा कौम हैं, ऐसा नहीं करेंगे तो मुर्दा हो जाएंगे। मौलाना मदनी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मुस्लिम सांप्रदायिकता हो या हिंदू सांप्रदायिकता जमीअतम उलमा हिंद हर प्रकार की सांप्रदायिकता के खिलाफ है क्योंकि यह देश की एकता एवं शांति के लिए घातक है।

उन्होंने यह भी कहा कि आज़ादी के बाद जब धर्म के आधार पर देश को विभाजित करने की कुछ लोगों की ओर से साजिश हुई तो उसके खिलाफ उठने वाली पहली आवाज़ जमीअतम उलमा-ए-हिंद की थी। हमारे बुजुर्गों का विचार यह था कि जब हम इस देश में 13-14 सौ वर्षों से प्रेम और भाईचारा के साथ रहते आए हैं तो अब आज़ादी के बाद हम एक साथ क्यों नहीं रह सकते।

उन्होंने कहा कि यही विचार जमीअतम उलमा-ए-हिंद का आज भी है। हमारा मानना है कि प्रेम और भाईचारा से ही यह देश जिंदा रह सकता है और आगे बढ़ सकता है अपितु आज नहीं तो कल, और कल नहीं तो परसों यह नष्ट हो जाएगा।

फलस्तीन और इजराइल के अतिहास का विस्तार से ज़िक्र करते हुए उन्होंने एक बार फिर कहा कि इजराइल अत्याचारी और तानाशाह है और फलस्तीन के लोग अपने देश को अत्याचारियों से मुक्त कराने के लिए ठीक वैसे ही संघर्ष कर रहे हैं जैसे भारत को अंग्रेज़ों की गुलामी से आज़ाद कराने के लिए हमारे उलमा, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह आदि ने संघर्ष किया था। दर्शकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अब आपको मैदान में आने की जरूरत है, आप जहां हैं वहीं काम करें, और जो कुछ करें धर्म से ऊपर उठकर करें। आप हिंदूओं से मेल-जोल बढ़ाएं, उनको अपने यहां बुलाएं, उनके यहां जाएं इसलिए कि निकट आकर ही वह गलत-फहमियां दूर की जा सकती हैं, जो संप्रदायिकों ने उनके मन में भर दी हैं। मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि आप जो भी कल्याणकारी कार्य करें इसमें धर्म देखे बगैर हर जरूरतमंद को शामिल करें। जमीअत उलमा-ए-हिंद का पहले दिन से यही पक्ष रहा है और अब भी है कि फिरकापरस्त नफरत फैला कर अपनी कुर्सी को मजबूत करना चाहते हैं, आप इस साजिश को अपने कृत्यों और कार्यों से विफल बना दें और उन्होंने हिंदूओं और मुसलमानों के बीच जो दूरी पैदा कर दी है उसे अपनी मुहब्बत से निकटता में बदल दें।

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