सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) ने एक प्रेस रिलीज़ ज़ारी करते हुए बताया है कि, मुहम्मद साकिब को उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्मांतरण अधिनियम, 2020 के तहत दर्ज सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है।
बिजनौर में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (POCSO अधिनियम) का निर्णय इस कानून के दुरुपयोग को उजागर करता है और इस विवाद को वापस लेने के लिए इस कानून के दुरुपयोग को दर्शाता है।
SDPI के मुताबिक़, धामपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 363 और 366, POCSO अधिनियम की धारा 7/8, एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(2)(5) और धर्मांतरण विरोधी अधिनियम की धारा 3/5(1) के तहत तय किया गया है।
साक्ष्यों की गहन जांच और निष्पक्ष सुनवाई के बाद, अदालत का फैसला कानून की सर्वोच्चता को उजागर करता है और इसकी वैधता पर सवाल उठाता है।
यह मामला धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत दायर किए गए सबसे पहले और सबसे चर्चित मामलों में से एक था, जो नवंबर 2020 में लागू हुआ था। वरिष्ठ अधिवक्ता कोमल सिंह और अधिवक्ता मशरफ कमाल के मजबूत बचाव ने साक्ष्य और कानूनी मजबूती के आधार पर अभियोजन पक्ष के मामले को पलट दिया और इस ऐतिहासिक रिहाई को संभव बनाया।
साकिब की रिहाई न केवल उसकी स्वतंत्रता को बहाल करती है, बल्कि न्याय और संवैधानिक मूल्यों में विश्वास की पुष्टि करते हुए दुर्भाग्यपूर्ण कानून को निरस्त करने की तत्काल आवश्यकता का संकेत भी देती है।