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चीफ जस्टिस के साथ हुई घटना संस्थाओं के ख़त्म होने के बाद इन्हें कुछ नहीं समझने के दुस्साहस का प्रदर्शन करती है: रविश कुमार

सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस बी आर गवई की ओर जूता फेंकने का प्रयास निंदनीय है लेकिन सरकार को इसकी गंभीरता समझ आने में इतना वक्त क्यों लगा?

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पौने छह बजे सवाल कर चुके थे कि इस घटना पर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और कानून मंत्री क्यों चुप हैं? क़ानून मंत्री को सूचना मिलते ही निंदा करनी चाहिए थी।

दोपहर तक कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी से लेकर केरला और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने इसकी कड़ी निंदा कर दी थी।

क्या सरकार को इस घटना की गंभीरता समझने में इतना वक्त लग गया? इतनी देर तक क्या गुणा भाग हो रहा था? कई दिनों से चीफ जस्टिस बी आर गवई के ख़िलाफ़ गोदी ऐंकरों के कार्यक्रम से लेकर सोशल मीडिया में अनाप शनाप बातें की जा रही थीं। उन सबको नज़रअंदाज़ किया गया।

यह बेहद अफसोसनाक है कि ऐसी घटना हुई है। क्या किसी और के साथ ऐसी उदारता दिखाई जाती? क्या इसलिए सरकार ने इतना वक्त लिया क्योंकि जूता उछालने वाला सनातन का नारा लगा रहा था?

बार संघ ने अच्छा किया समय रहते एक्शन लिया लेकिन जजों से लेकर सभी को इस पर बोलना चाहिए। यह रैंडम घटना नहीं है। जूता निकालने वाले का अधिकार बोध कहां से आया है? जूता निकालने की घटना का संबंध जातिगत और सामंती पृष्ठभूमि से है।

आज डॉ अंबेडकर होते तो राष्ट्रीय उपवास पर चले गए होते। गांधी होते तो सबके बदले ख़ुद प्रायश्चित कर रहे होते। यह घटना संस्थाओं के ख़त्म होने के बाद इन्हें कुछ नहीं समझने के दुस्साहस का प्रदर्शन करती है।

(यह लेख पत्रकार रविश कुमार के एक्स (ट्विटर) एकाउंट से लिया गया है)

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