इंटरनेशनल डेमोक्रेटिक राइट्स फाउंडेशन (IDRF) द्वारा 17 मई 2025 को ‘पहलगाम हमला: मीडिया नैरेटिव और मुस्लिम पहचान — ज़िम्मेदारी, प्रतिनिधित्व और परिणाम’ पर एक चर्चा का आयोजन किया गया।
इस चर्चा में मुख्य वक्ता के तौर पर इतिहासकार और लेखक अशोक कुमार पाण्डेय तथा सुप्रीम कोर्ट के वकील और एएमयू के पूर्व छात्रसंघ सचिव सुलैमान मोहम्मद खान शामिल हुए।
चर्चा में अशोक कुमार पाण्डेय ने मीडिया की कवरेज पर गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि पहलगाम में जब आतंकियों ने हिंदू पर्यटकों से उनका धर्म पूछकर गोली मारी, तभी यह समझ आ गया था कि आतंकी इस घटना के जरिए देश में दंगे कराना चाहते हैं।
लेकिन अफ़सोस कि हमारी मीडिया इस घटना की गंभीरता और इसके पीछे की साजिशों को समझे बगैर ही हिन्दू–मुस्लिम एंगल देना शुरू कर दिया। यह भी दुखद है कि आतंकियों को मंसूबों को समझने में मीडिया को 4 दिन लग गए।
अशोक कुमार पांडेय ने अपने कश्मीर के अनुभवों को लोगों के साथ सांझा करते हुए बताया कि देश और कश्मीर की आवाम ने मीडिया की कवरेज से अलग समझदारी का परिचय दिया और आतंकियों के मंसूबों को नाकाम किया। जो काम मीडिया को करना चाहिए था, उस काम को जनता से जिम्मेदारी से पूरा किया। अशोक कुमार पांडेय ने ऐसी परिस्थितियों के लिए वैकल्पिक मीडिया, यूट्यूबर्स और सिटीजन जर्नलिज्म को मज़बूत किए जाने पर जोर दिया।
सुलैमान मोहम्मद खान ने कहा कि इन्हें मीडिया नहीं बल्कि गिद्ध मीडिया कहा जाना चाहिए। उन्होंने एक रिसर्च का हवाला देते हुए कहा कि पहलगाम हमले के बाद मीडिया की सांप्रदायिक कवरेज के वजह से देश में नफरत की 180 से ज्यादा घटनाएं हुई हैं।
उन्होंने कहा कि देश के मुसलमान अपने देश के वफादार, देशप्रेमी हैं और इसके लिए कुर्बानी भी दिए हैं, इसलिए इन आतंकी घटनाओं की वजह से मुस्लिमों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कर्नल सोफिया कुरैशी बीजेपी नेताओं के बयान और विदेश सचिव विक्रम की बेटियों को ट्रोल किए जाने की आलोचना की।
डॉ शुजात अली क़ादरी ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि हमें सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए और ये भी देखना चाहिए कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद कश्मीरी आवाम ने जिस तरह से प्रदर्शन किया और पर्यटकों की मदद की, वो भारतीयता को प्रदर्शित करता है। कार्यक्रम का संचालन डॉ फैजुल हसन ने किया।