यह एक लिस्ट है टॉप 146 लोगों की ,जो अब रिटायर्ड है कोई हाई कोर्ट का जज है तो कोई सुप्रीम कोर्ट से, चीफ सेक्रेटरी, डीजीपी ,कमिश्नर, एम्बेसडर ,आर्मी के जनरल वगैरह सब है…ये वो 146 लोग है जो रिटायर्ड होने के बाद भी आज के सिस्टम का हिस्सा है।
बंगाल चुनाव नतीजे के बाद हुई हिंसा ने इन सब का दिल दहला दिया और इन्होंने एक लेटर राष्ट्रपति व उसकी प्रति चीफ जस्टिस को कुछ दिन पहले भेजी है।
इन 146 लोगों को यह मालूम था कि बंगाल चुनाव नतीजों के बाद हिंसा की खबरों में से 80% फर्जी एडिटेड क्लिप्स फोटोशॉप वाली घटनाए थी, इसके बावजूद भी इनके अंदर का स्वयंसेवक या कार्यकर्ता इन्हें एक पार्टी विशेष के एजेंडे पर चलने को मजबूर कर रहा है।
लिस्ट के इन नामों पर गौर से देखेंगे तो इनमें से अधिकांश लोग यूपीए-2 के दौरान सेवारत थे, और सर्विस में रहते हुए इन्होंने विवेकानंद फाउंडेशन का एजेंडा आगे बढ़ाया था , ये वही 146 लोग है जिन्हें टॉप पदों पर नियुक्ति कांग्रेस सरकार ने दी थी।
आज मोदी सरकार में सबसे पहले किसी भी मुख्य पद पर प्रशासनिक नियुक्ति के दौरान यह देखा जाता है कि इसने यूपीए-2 में हमारी कितनी सेवा की थी और इसके पास विवेकानंद फाउंडेशन का चरित्र प्रमाण पत्र है या नही, यहां अपने लोगों को मनपसंद नियुक्ति देने के चक्कर मे नियम कानून ताक पर रखते हुए भी किसी भी चहेते अधिकारी को मुख्य पद पर बैठा दिया जाता है।
और ये शीर्ष नौकरशाह सिस्टम के इशारे पर पूरा सिस्टम चलाते है।
ये 146 लोगों के नाम सिर्फ नाम नही है इन्हें डेमोक्रेसी में दीमक की तरह समझा जाना चाहिए।
आज यदि स्वतंत्र जांच हो जाए तो इन दीमकों ने सर्विस के दौरान एक पार्टी विशेष के एजेंडे को कैसे आगे बढ़ाया होगा ..वो सच सामने आ जायेगा।
जरिये विवेकानंद फाउंडेशन ये 146 लोग इंडिरेक्टली गुरुकुल व चाणक्य जनों के प्यादे व मोहरों का काम कर रहे थे।
इस तरह कल्पना कर सकते है कि अभी वर्तमान में इस तरह के सैकडों हजारो दीमक सिस्टम का हिस्सा बन कर एक पार्टी विशेष के कार्यकर्ता का फर्ज अदा कर रहे है।
यदि 2024 में कोई सत्ता परिवर्तन हुआ तो उसके आगे अहम चुनौती होगी इन दीमकों के साए में सत्ता कैसे चलायें !!
अब मुख्य सवाल हैं…
क्या मुख्य विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस के पास कोई नीति है इन दीमकों से निपटने की ??..
क्या यह नियम नही बनना चाहिए …??
1. डेमोक्रेसी को साफ स्वच्छ रखने के लिए आवश्यक है कि एक कानून बने किसी भी रिटायर्ड नौकरशाह को जॉब छोड़ने या रिटायर्ड होने के बाद अगले 7 साल तक कोई चुनाव नही लड़ने दिया जाए, और न कोई नियुक्ति दी जाए।
2. सेवारत कार्मिकों के सोशल मीडिया अकाउंट्स समेत अन्य गतिविधियों पर पैनी नजर रखी जाए ,उन्हें किसी भी राजनीतिक दल का कार्यकर्ता न बनने दिया जाए।
(साभार नवनीत चतुर्वेदी की फेसबुक वाल से)