वर्ष 2006 के लोकल ट्रेन श्रृंखलाबद्ध विस्फोट मामले में दो दोषियों का बंबई उच्च न्यायालय में प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एस. मुरलीधर ने सोमवार को दलील दी कि इस मामले में पक्षपातपूर्ण जांच की गई, जिसके कारण अभियोजन पक्ष द्वारा पर्याप्त सबूत पेश किए बिना उनके मुवक्किल 18 साल से जेल में सड़ रहे हैं।
मुरलीधर आरोपी मुज़म्मिल शेख और ज़मीर शेख का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जिन्हें 2015 में मुंबई की एक अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
आपको बता दें कि 11 जुलाई 2006 को पश्चिमी उपनगरीय ट्रेनों के सात डिब्बों में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट हुए, जिसमें 189 यात्री मारे गए और 824 घायल हो गए।
इस मामले में आठ वर्ष से अधिक समय तक चली सुनवाई के बाद, महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत एक विशेष अदालत ने अक्टूबर 2015 में पांच दोषियों को मृत्युदंड और सात अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
न्यायमूर्ति अनिल एस किलोर और न्यायमूर्ति श्याम सी चांडक की विशेष पीठ मृत्युदंड की पुष्टि याचिकाओं और दोषसिद्धि के खिलाफ अपीलों पर सुनवाई कर रही है।
मुरलीधर ने मीडिया ट्रायल, अभियोजन पक्ष, ट्रायल कोर्ट की ओर से चूक और अभियुक्तों के इकबालिया बयानों जैसे विभिन्न मुद्दों पर बहस की. लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, मुरलीधर ने कहा, “ऐसे मामलों में जहां सार्वजनिक आक्रोश है, पुलिस का दृष्टिकोण हमेशा पहले दोषी मान लेना और फिर आगे बढ़ना होता है। पुलिस अधिकारी ऐसे मामलों में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं और जिस तरह से मीडिया मामले को कवर करता है, उससे व्यक्ति का दोषी होना तय होता है। ऐसे कई आतंकी मामलों में जांच एजेंसियों ने हमें बुरी तरह से निराश किया है।
निचली अदालत के फैसले के बाद, महाराष्ट्र सरकार ने मृत्युदंड की पुष्टि के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जबकि आरोपियों ने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती दी।
मौत की सज़ा पाए दोषियों में बिहार के कमाल अंसारी, मुंबई के मोहम्मद फैसल अताउर रहमान शेख, ठाणे के एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी, सिकंदराबाद के नवीद हुसैन खान और महाराष्ट्र के जलगांव के आसिफ खान शामिल हैं। इन सभी को बम रखने का दोषी पाया गया।
तनवीर अहमद मोहम्मद इब्राहिम अंसारी, मोहम्मद माजिद मोहम्मद शफी, शेख मोहम्मद अली आलम शेख, मोहम्मद साजिद, मरगूब अंसारी, मुजम्मिल अताउर रहमान शेख, सुहैल महमूद शेख और जमीर अहमद लतीउर रहमान शेख को उम्रकैद की सजा दी गई।
मुरलीधर ने तर्क दिया, “मकोका के तहत, ये इकबालिया बयान सबूत के तौर पर स्वीकार्य नहीं हैं क्योंकि अधिकारी उन व्यक्तियों की पहचान करने में विफल रहा है, जिनके इकबालिया बयान उसने दर्ज किए थे। यह ट्रायल कोर्ट की एक बहुत गंभीर कानूनी खामी है। इसलिए, इस कोर्ट को अब इन बयानों को खारिज कर देना चाहिए।