SCs और STs पर हजारों साल से अत्याचार हुआ और उनके अधिकारों को छीना गया. संविधान निर्माताओं ने सामाजिक न्याय के तौर पर इन्हें नौकरी, शिक्षा और राजनीति में आरक्षण दिया।
भेदभाव और हिंसा को दूर करने के लिए कानून बने. अलग से सब प्लान बनाकर बजट दिया. कई योजनाएं लागू की गई. भारत के मुसलमानों ने हमेशा इसका समर्थन किया है तथा वंचित समुदाय के साथ हमेशा नज़र आते हैं।
ठीक उसी प्रकार एक आधुनिक लोकतंत्र में संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देश के अनुसार किसी भी प्रकार के अल्पसंख्यक (भाषाई, जातीय, धार्मिक, ethnic, वगैरह) को अपनी भाषा, धर्म, पहचान और संकृति बचाने की आजादी होनी चाहिए।
इसी को ध्यान में रखकर संविधान में आर्टिकल 25 से लेकर 30 के प्रावधान जोड़े गए हैं. जिनमें अल्पसंख्यकों को अपना शिक्षण संस्थान स्थापित करने और चलाने की आजादी है. जहां तक सरकारी खर्च का सवाल है तो लाखों दिए जल सकते हैं. कुंभ का आयोजन हो सकता है. लेकिन शैक्षिक तौर पर पिछड़े एक समुदाय के लिए सरकार एक यूनिवर्सिटी को नहीं चला सकती।
मेरा हमारे दलित और OBC ऐक्टिविस्ट भाईयों से कहना है कि इतनी संकीर्ण मानसिकता नहीं रखें. ब्रॉड सोचें. अपने सोच को थोड़ा व्यापक बनाएँ. किसी प्रोपेगेंडा का शिकार नहीं बनें. ये सोचें कि शिक्षा से वंचित समुदाय के लिए एक विशेष प्रावधान है. इसलिए उनसे निवेदन है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मायनॉरिटी स्टेटस का विरोध नहीं करें।
(यह लेखक के अपने विचार हैं, लेखक अब्दुर रहमान पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं)