डिजिटल अधिकार समूह इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (IFF) ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन के उस आदेश की कड़ी निंदा की है, जिसमें 25 पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाकर उन्हें जब्त करने के निर्देश दिए गए हैं। संगठन ने इसे पूरे भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अकादमिक जांच के लिए गंभीर खतरा बताया।
गृह विभाग की यह अधिसूचना 5 अगस्त को जारी हुई, जो अनुच्छेद 370 हटाए जाने की छठी वर्षगांठ के साथ मेल खाती है। इसमें इतिहासकार ए.जी. नूरानी, अरुंधति रॉय और सुमंत्र बोस सहित कई प्रमुख लेखकों की किताबों को ‘अलगाववाद को बढ़ावा देने’ और ‘भारतीय राज्य के खिलाफ हिंसा भड़काने’ के आरोप में जब्त करने के आदेश दिए गए हैं।
अधिकार समूह ने कहा कि ये किताबें पेंगुइन, हार्पर कॉलिन्स और रूटलेज जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित ऐतिहासिक और राजनीतिक विश्लेषण हैं, न कि हिंसा के लिए खुले आह्वान। आदेश में भी यह स्वीकार किया गया है कि कई शीर्षक “ऐतिहासिक या राजनीतिक टिप्पणी के रूप में प्रच्छन्न” हैं।
आईएफएफ का आरोप है कि आदेश में केवल व्यापक आरोप लगाए गए हैं, लेकिन किसी भी किताब के विशेष अंश या हिंसा के तत्काल खतरे का साक्ष्य पेश नहीं किया गया। संगठन ने कहा कि यह प्रतिबंध कानूनी रूप से अस्वीकार्य है और देशभर में सेंसरशिप का माहौल पैदा करेगा, क्योंकि प्रकाशक और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म कानूनी जोखिम से बचने के लिए इन किताबों को हटा सकते हैं।
आईएफएफ ने केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन से अपील की कि विवादित मुद्दों का समाधान संवाद और पारदर्शिता से किया जाए, न कि व्यापक प्रतिबंधों से।