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गुजरात में ‘डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट’ और पड़ोसियों की प्रताड़ना से तंग आकर मुस्लिम किशोरी ने की आत्महत्या, 40 दिन बाद भी नहीं हुई आरोपियों की गिरफ्तारी

अहमदाबाद के गोमतीपुर इलाके में 15 वर्षीय मुस्लिम किशोरी की आत्महत्या को 40 दिन बीत चुके हैं, लेकिन उसके सुसाइड नोट में नामज़द पड़ोसियों की गिरफ्तारी अब तक नहीं हुई है। परिजनों का कहना है कि नया घर खरीदने की चाहत हमारे लिए दुख और त्रासदी में बदल गई।

करीब दस महीने पहले अंसारी परिवार ने अपनी ज़िंदगी की पूरी जमा-पूंजी लगाकर पड़ोस के हिंदू मकान मालिक सुमन सोनवड़े से मकान खरीदा था। दिसंबर 2024 तक पूरी रकम चुका दी गई थी, लेकिन मकान मालिक की मौत के बाद उसके बेटे दिनेश ने कब्ज़ा देने से इनकार कर दिया और गुजरात डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट का हवाला देने लगा।

परिवार का आरोप है कि इसके बाद दिनेश और स्थानीय हिंदुत्व संगठनों ने उन्हें लगातार परेशान करना शुरू कर दिया। 7 अगस्त को दिनेश व उसके रिश्तेदारों ने सानिया और उसके छोटे भाई पर हमला किया। दो दिन बाद सानिया ने आत्महत्या कर ली और अपने सुसाइड नोट में दिनेश व उसके सहयोगियों का नाम लिखा।

सानिया की बहन ने बताया कि महीनों से परिवार का अपमान किया जा रहा था। दिनेश बाल खींचकर खींचता, पानी फेंकता और छोटी बहन का पीछा करता। “हम खिड़की तक नहीं खोलते थे, दम घुटता था लेकिन डर ज्यादा था,” उन्होंने कहा।

सानिया की मौत के बाद परिवार ने पुलिस से कई बार शिकायत की, लेकिन उल्टा उन्हें पीएएसए (गुंडा एक्ट) में फँसाने की धमकी दी गई और कहा गया कि मकान का सौदा अमान्य हो सकता है।

काफी संघर्ष के बाद एफआईआर दर्ज हुई, जिसमें छह लोगों पर नाबालिग को आत्महत्या के लिए उकसाने और प्रताड़ना का मामला दर्ज है, लेकिन अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई।

विवादित कानून पर सवाल

गुजरात डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट 1991 के तहत किसी भी “डिस्टर्ब्ड एरिया” में संपत्ति खरीद-बिक्री के लिए कलेक्टर की अनुमति ज़रूरी है।

मूल उद्देश्य था दंगों के दौरान मुस्लिम परिवारों को मजबूरी में घर बेचने से बचाना, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि अब यह कानून मुसलमानों को हिन्दू बहुल इलाकों में घर खरीदने से रोकने का हथियार बन चुका है।

अहमदाबाद, वडोदरा और सूरत के बड़े हिस्से दशकों से “डिस्टर्ब्ड” घोषित हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि इससे धार्मिक विभाजन और गेट्टोइज़ेशन बढ़ा है। नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) दिलाने में भ्रष्टाचार आम हो चुका है।

अंसारी परिवार आज भी उसी किराए के घर में रह रहा है, जिसके सामने उनका खरीदा हुआ मकान है, जिसमें वे कभी दाख़िल नहीं हो पाए।

सानिया की बहन ने आंसुओं के साथ कहा, “वो अपने नए घर को सजाने के सपने देखती थी, लेकिन अब वो हमारे बीच नहीं है।”

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