उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा का सबसे मज़बूत वोटर मुसलमान हैं। जिनपर इन दोनों पार्टियों की सियासी इमारत खड़ी है। अगर मुसलमान इन दोनों पार्टियों सपा-बसपा का साथ छोड़ दें तो ये दोनों ही पार्टियां अपना वजूद खो देंगी।
उत्तर प्रदेश की 9% यादव जाति की लीडरशिप सपा करती है। सपा सरकार ने यादव जाति के लिए वो सब कुछ किया है जो किसी लीडरशिप से कोई भी कम्युनिटी तवक़्क़ो करती है।
ख़ैर। अभी कुछ साल पहले जब समाजवादी पार्टी में विवाद हुआ था तब अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव ने सपा से नाराज़ होकर पार्टी छोड़ने का फ़ैसला लिया था और फिर अपनी पार्टी बनाने का फ़ैसला लिया। शिवपाल सिंह यादव ने 29 अगस्त 2018 को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की बुनियाद रखी और पार्टी बनने के बाद 2019 लोकसभा चुनाव में पहली बार उनकी पार्टी ने 31 उम्मीदवार उतारे थे। लगभग सभी सीटों पर ज़मानत जब्त हुई थी इल्ला वाहिद फ़िरोज़ाबाद लोकसभा सीट के, इस सीट पर ये पार्टी तीसरे स्थान पर थे चूंकि इस सीट से खुद शिवपाल सिंह यादव ही उम्मीदवार थे और हैरत की बात ये है कि शिवपाल सिंह यादव ने फ़िरोज़ाबाद सीट पर अपने भतीजे अक्षय यादव को चुनाव हराकर भाजपा को जिताने का काम किया।
अब आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में शिवपाल सिंह यादव की पार्टी (PSP) चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। आप यहां ये समझिये कि शिवपाल सिंह यादव का वोटर है कौन?
फ़क़त 3 साल पहले बनी इस पार्टी का वजूद कहां है? मात्र 9% यादव वोटर्स हैं उनमें से कितने फ़ीसद यादव शिवपाल सिंह के साथ होंगे? आख़िर क्यों अखिलेश यादव अपने चाचा की पार्टी से गठबंधन कर रहे हैं? क्या सूबे की 9 फ़ीसद यादव जाति पर समाजवादी पार्टी को भरोसा नहीं है?
देखिये दरअसल हक़ीक़त ये है कि अखिलेश यादव को खूब अच्छे से मालूम है उनके चाचा शिवपाल सिंह जी यादव वोटर्स को तोड़ पाएं या नहीं, यादव उन्हें वोट दें या नहीं लेकिन सूबे के सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी ज़रूर कर देंगे।
2019 चुनाव में फ़िरोज़ाबाद लोकसभा से शिवपाल सिंह यादव 90 हज़ार वोट पाए थे आप उस सीट का गुणा-भाग कर लीजिए मुझे उम्मीद है इनमें सबसे ज़्यादा मुस्लिम वोटर्स की तादाद होगी।
यानी 9 फ़ीसद यादव वोटर्स में सेंधमारी के डर से अखिलेश यादव अपने चाचा की पार्टी (PSP) से गठबंधन करने की ख़्वाहिश रखते हैं। चूंकि अखिलेश यादव को अपनी जाति के 9 फ़ीसद यादव वोटर्स पर भरोसा नहीं है। लेकिन उत्तर प्रदेश के 22 फ़ीसद मुसलमानों को तोहफ़े में “मुज़फ़्फ़रनगर नरसंहार” देने वाले अखिलेश यादव को मुस्लिम वोटर्स पर पूरा भरोसा है कि वो उन्हें छोड़कर कहीं जाने वाले नहीं हैं। इसलिए अखिलेश यादव 3 साल पहले बनी अपने चाचा शिवपाल यादव की पार्टी से तो गठबंधन करेंगे लेकिन किसी मुस्लिम क़यादत से गठबंधन नहीं करेंगे। समझें? ये होता है भरोसा और ये होता है कॉन्फिडेंस।
(यह लेखक के अपने विचार है लेखक शाहनवाज अंसारी सोशल एक्टीविस्ट है)