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भारत जैसा लोकतांत्रिक देश, किसी के दबाव में नहीं आ सकता

भारत एक लोकतांत्रिक देश है और किसी के दबाव में नहीं आता। ये शब्द सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं हैं, बल्कि करोड़ों भारतीयों के जज़्बे और तहज़ीब का आईना हैं। यह वही भारत है जिसकी धरती पर गंगा-जमुनी संस्कृति ने जन्म लिया, जहां काशी में आरती और अजमेर में कव्वाली एक ही रूह की दो आवाज़े हैं। भारत कोई साधारण राष्ट्र नहीं, बल्कि यह एक विचार है। सहअस्तित्व, संवाद और विविधता का विचार। हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सब मिलकर इस मिट्टी को अपना वतन मानते हैं। यही वजह है कि, आज भी बनारस की सुबहें और हैदराबाद की इफ्तार एक ही चादर में लिपटी लगती हैं।

गंगा-जमुनी तहज़ीब, जो भारत की पहचान है, उसे बार-बार उन देशों से नसीहतें मिलती हैं जिन्होंने ना खुद कभी आंतरिक समरसता सीखी, और न ही वैश्विक न्याय का पालन किया। लेकिन अफ़सोस, जब दुनिया में लोकतंत्र के सबसे बड़े ‘दावेदार’ खुद दोहरे मापदंडों के साथ भारत को नसीहत देने लगें, तब सच्चाई के आईने में उनका चेहरा बेनकाब होता है। डोनाल्ड ट्रंप ने सीज़फ़ायर और कश्मीर में मध्यस्थता पर बयान देकर अपनी पुरानी आदत को फिर से ज़िंदा किया है। वह आदत है दुनिया को ‘हिदायत’ देना और अपने अपराधों पर पर्दा डालना। जब कोई बाहरी शक्ति, विशेषकर वह जो मानवाधिकार और लोकतंत्र की दुहाई देकर खुद आतंकवाद को पोषित करती हो, भारत को नैतिकता का पाठ पढ़ाती है, तो यह न सिर्फ विडंबना है, बल्कि भारत की आत्मा पर हमला है।

भारत-पाकिस्तान सीज़फ़ायर पर, ट्रंप ने इसे राजनीतिक श्रेय के तौर पर भुनाने की कोशिश की, लेकिन भारत का विदेश मंत्रालय इस पर मौन नहीं रहा, बल्कि तुरंत ही यह स्पष्ट किया गया कि, शांति पसंद देश हैं, लेकिन सीज़फ़ायर हम अपनी शर्तों पर करते हैं, किसी के दबाव में नहीं। इस सीज़फ़ायर में किसी तीसरे पक्ष का कोई योगदान नहीं। भारत सरकार ने यह भी साफ़ कर दिया कि, पीओके हमारा है, ना तो हम इसे छोड़ेंगे, और ना ही किसी की मध्यस्थता स्वीकार करेंगे। पीओके कैसे वापस लेना है इसके लिए हमें किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की ज़रुरत नहीं है।

जूलानी और अमेरिकी समर्थन की हकीकत

सीरिया हो या इराक, अफगानिस्तान हो या यमन, पूरी दुनिया जानती है कि किसने आतंक की फ़सल बोई और फिर उसे “फ्रीडम फाइटर्स” कहकर सींचा। जूलानी जैसे खूंखार आतंकियों को ‘गुड टेररिस्ट’ कहने वाले को यह अधिकार नहीं कि वह भारत के लोकतंत्र या उसके फैसलों पर उंगली उठाए। जिस तरह खुलेआम जूलानी को ‘रहस्यात्मक स्वतंत्रता सेनानी’ बताया गया, और उसके गुटों को कथित ‘लोकतांत्रिक विपक्ष’ घोषित किया, वह सिर्फ दोहरेपन की मिसाल नहीं, बल्कि इंसाफ के मुंह पर तमाचा है। यह बात किसे पता नहीं कि, जूलानी का नाम आईएसआईएस और अलकायदा के हत्यारों में गिना जाता है? फिर भी उसे समर्थन देना, क्या यह आतंक के साथ खड़े होने जैसा नहीं?

पिछले कुछ वर्षों से भारत ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी नीति को स्पष्ट किया है, “आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते। पहलगाम में हुआ आतंकी हमला इस बात का ताज़ा प्रमाण है कि पाकिस्तान अब भी सीमा पार से आतंकवाद को हवा दे रहा है। इस हमले में निर्दोष तीर्थयात्रियों को निशाना बनाया गया, और जांच एजेंसियों ने इसके पीछे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद का हाथ होने की पुष्टि की है।

पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर हमला करके वहां के आतंकी ठिकानों को नष्ट करके एक चेतावनी भी दी है कि, जब तक पीओके में आतंक की फैक्ट्री चल रही है, तब तक भारत चुप नहीं बैठेगा। अगर दोबारा इस तरह का कोई आतंकी हमला हुआ तो भारत ऐसा जवाब देगा, जिसे इतिहास याद रखेगा। भारत अब केवल चेतावनी नहीं देगा बल्कि, इस आतंक के ख़िलाफ़ निर्णायक कार्यवाई करेगा, ताकि न सिर्फ आज, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित भारत सुनिश्चित किया जा सके।

भारत आज भी अपने बल पर खड़ा है, इंसाफ के साथ, इंसानियत के साथ। भारत की तहज़ीब, उसका संविधान, और उसकी बहुलता आगे भी दुनिया को राह दिखाते रहेंगे।
यह भारत है, और भारत किसी के दबाव में नहीं आता। भारत आज भी कहता है:
“हम अपने फैसले खुद लेते हैं, दबाव से नहीं, तहज़ीब और तर्क से। अगर हम हमला करते हैं तो अपनी मर्ज़ी से, और अगर सीज़फायर करते हैं तोअपनी शर्तों पर। हमें गर्व अपनी सेना पर, हमें गर्व है भारत के वीर सैनिकों पर, हमें गर्व है इस धरती के सभी वीर पुत्रों पर, जो किसी भी स्थिति में अपने देश की सुरक्षा भी करना जानते हैं, और किसी भी आतंकी हमले का मुंहतोड़ जवाब देना भी जानते है।

भारत जानता है कि, पाकिस्तान के आतंकी हमले का कैसे जवाब दिया जाता है। भारत को पीओके लेने के लिए और पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद को जड़ से ख़त्म करने के लिए, वॉशिंगटन की प्रेस कॉन्फ्रेंस की आवश्यकता नहीं है। भारत ने कभी आतंक के साथ समझौता नहीं किया। कारगिल हो या उरी, भारत ने अपनी संप्रभुता की रक्षा की है।

आतंक का जवाब हमेशा दृढ़ता से दिया है। लेकिन जब अमेरिका जैसे देश, जो खुद को लोकतंत्र का ‘अवतार’ समझते हैं, भारत को ‘ध्यान रखने’ की चेतावनी देते हैं, तब यह सिर्फ भारत का नहीं, वैश्विक न्याय का अपमान है। भारत के आंतरिक मसलों पर टिप्पणी करने से पहले, किसी भी देश को चाहिए कि, वह अपने देश की गहरी नस्लीय खाई, बंदूक हिंसा, और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को लेकर अपनी भूमिका पर आत्ममंथन करें। लोकतंत्र सिर्फ चुनाव जीतने का नाम नहीं, बल्कि हर विचार का सम्मान करने का नाम है। यह भारत ने सदियों से सिखाया है।

(यह लेखक के अपने विचार है, लेखक रिज़वान हैदर मिडिल ईस्ट मामलों के जानकार एवं पत्रकार है)

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