बरेली में सात मुस्लिम युवकों को कथित तौर पर अवैध रूप से हिरासत में रखकर यातना देने और जबरन धर्मांतरण के आरोप लगाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख़्त रुख अपनाया है।
अदालत ने बरेली पुलिस के एडीजी, आईजी और एसएसपी को 8 सितम्बर को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर जवाब देने का आदेश दिया है।
परिवारों का कहना है कि अगस्त महीने में स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG) के जवान सादे कपड़ों में आए और अलग-अलग जगहों से युवकों को उठा ले गए।
अब्दुल्ला की पत्नी तबस्सुम ने कहा –
“कई दिनों तक मुझे अपने पति का कोई पता नहीं चला। जब थाने गई तो गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। बल्कि पुलिस ने मुझसे झूठे कागज़ पर साइन कराए कि मेरा पति घर लौट आया है। जब कोर्ट में उनसे मुलाक़ात हुई, तो उन्होंने कहा कि उन्हें हिरासत में बुरी तरह पीटा जा रहा है और जबरन कागज़ों पर दस्तख़त करवाए गए।”
सलमान के भाई अथर का आरोप है कि
“रात में कुछ लोग घर आए और सलमान को बिना बताए ले गए। जब परिवार ने पूछा तो कहा – ‘तुम भी हिन्दू से मुसलमान बने हो।’ अब आरोप लगाया जा रहा है कि उसने अब्दुल्ला को मुस्लिम बनाया, जबकि दशकों से दोनों की कोई मुलाक़ात तक नहीं हुई।”
इलाहाबाद हाईकोर्ट में पीड़ितों का केस लड़ रहे एडवोकेट मोहम्मद हुमैर खान ने कहा- बिना गिरफ्तारी मेमो, FIR या वारंट के लोगों को उठाना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। पुलिस हिरासत में युवकों से जबरन इक़रारनामे लिखवाए जा रहे हैं। यह सीधा-सीधा गैरक़ानूनी हिरासत और यातना का मामला है।”
इस पूरे मामले पर एसपी बरेली अंशिका वर्मा ने मीडिया से कहा, धर्मांतरण रैकेट का पर्दाफाश किया गया है। इसी सिलसिले में कार्रवाई हुई है। कुछ लोगों ने अब्दुल्ला और अन्य को इस्लाम कबूल कराने का काम किया।
मामला उत्तर प्रदेश अवैध धर्मांतरण निषेध अधिनियम 2021 और अन्य धाराओं में दर्ज किया गया है। जांच जारी है।”
हाईकोर्ट की बेंच का कहना है कि, यदि अवैध हिरासत और हिरासत में यातना के आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन होगा और इसके लिए तुरंत जवाबदेही तय करनी होगी।”
अगली सुनवाई 8 सितम्बर को होगी, जहां अदालत में सभी आरोपियों को पेश करने का आदेश दिया गया है।