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भोपाल:- ‘जावेद’ के जज़्बे को सलाम, पत्नी के गहने बेच ऑटो को बनाया एम्बुलेंस, मरीजों को मुफ्त ले जाते हैं अस्पताल

कोरोना की दूसरी लहर को रोकने में भले ही सरकारें नाकाम साबित हो रही हों लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो किसी फरिश्ता की तरह दूसरों की मदद कर रहे हैं।

भोपाल के जावेद भी किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं। जावेद भले ही ऑटो चलाते हों लेकिन उनका दिल किसी करोड़पति से कम नहीं है। ऐसी विषम परिस्थिति में जहां लोग अपनों का ही साथ छोड़ दे रहे हैं ऐसे में जावेद लोगों की मदद कर रहे हैं।

जावेद ऑटो चलाते हैं। उन्होंने अपने ऑटो को मिनी एम्बुलेंस में बदल दिया है। और अब वे कोरोना मरीजों को अपने ऑटो में बिठाकर अस्पताल पहुंचा रहे हैं वो भी बिल्कुल फ्री में।

हैरत की बात ये है कि ऑटो को एम्बुलेंस बनाने के लिए जावेद के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी के गहने बेच डाले।

एक न्यूज चैनल से बात करते हुए जावेद बताते हैं कि लोगों का दर्द उनसे देखा नहीं गया। मध्यप्रदेश में एम्बुलेंस की भारी कमी है जिसके कारण लोग अस्पताल तक पहुंच ही नहीं पा रहे हैं। इसलिए मैंने लोगों की मदद करने के लिए ऑटो को एम्बुलेंस बना दिया। मेरे पास पैसे नहीं थे इसलिए मुझे अपनी पत्नी के जेवर बेचने पड़े।

जावेद ने अपने इस छोटे से एम्बुलेंस में ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ साथ ज़रूरत की तमाम चीजों को रखा है जो एक एम्बुलेंस में ज़रूरी होता है।

कोरोना महामारी में बहुत सारे लोग एक दूसरे की मदद में जुटे हैं। जावेद ही नहीं बल्कि मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाले हजारों ऐसे जावेद हैं जो अपना सबकुछ लगाकर लोगों की मदद कर रहे हैं।

एक तरफ सरकार और सरकारी तंत्र द्वारा मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाकर कोरोना के लिए ज़िम्मेदार ठहराने के हर सम्भव प्रयास किया गया वहीं दूसरी तरफ इसी मुस्लिम समुदाय ने आज हज़ारों लोगों की मदद कर हिंदुस्तान की असल गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश की है।

आज मुस्लिम समुदाय हर तरह से कोरोना पीड़ितों की मदद में जुटा हुआ है। दिल्ली समेत देश के अलग अलग हिस्सों में सैंकड़ों मस्जिदों और मदरसों को कोरोना मरीजों के लिए आइसोलेशन सेंटर के रूप में बदल गया है।

इतना ही नहीं सैंकड़ों ऐसी गैरसरकारी तंजीमें हैं जो लोगों को फ्री में ऑक्सीजन सिलेंडर मुहैया करा रहे हैं।
सोशल मीडिया पर कई ऐसी खबरें वायरल हुई है जिसमें कोरोना के कारण हुई मौत की वजह से परिवार वालों ने शव को छोड़ दिया। ऐसी स्थिति में मुस्लिम नौजवानों ने अर्थी को कंधा देकर लाश का अंतिम संस्कार कराया।

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