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पैसे उधार लेकर पढ़ने वाला ड्राइवर का बेटा ‘मोइन मंसूरी’ पश्चिम बंगाल में बना कलक्टर

मुरादाबाद के ठाकुरद्वारा कस्बे के वली मोहम्मद मंसूरी जब संविदा की नौकरी पाकर बस ड्राइवर बन गए तो उन्होंने कुछ दिन तक इस बात को छिपाए रखा था, सिर्फ उनका परिवार जानता था कि वो सविंदाकर्मी है, संविदाकर्मी एक अस्थाई नौकरी होती है जिसमे बेहद कम तनख्वाह पर गुजारा करना होता है।

वली मोहम्मद को लगता था कि समाज और रिश्तेदारों में रुतबे और सम्मान के लिए जरूरतमंद दिखना घातक होता है। इसलिए वह अपनी नौकरी को सरकारी ही बताया करते थे. हालांकि उनकी उम्मीदें उनके बेटे पर टिकी थी जिसके सहारे वो संविदा की तकलीफदेह नौकरी से आगे बढ़ना चाहते थे। अब बेटा कलक्टर बन गया है।

कभी 16 साल की उम्र में पढ़ाई के साथ परिवार को आर्थिक सहारा देने में जुटे उनके बेटे मोइन मंसूरी ने कम्प्यूटर ऑपरेटर के तौर पर काम सीखना शुरू किया था और फिर वो जन सेवा केंद्र से जुड़कर काम करने लगा, इसी मोइन ने कुछ सालों तक न केवल अपनी पढ़ाई का खर्च खुद जुटाया बल्कि परिवार का सहारा भी बना।

वली मोहम्मद कहते हैं कि वो 20 से 25 हजार रुपए महीना कमा रहा था, हम उससे पूरी तरह संतुष्ट थे। एक दिन उसने अचानक कहा कि दिल्ली जाकर यूपीएससी की तैयारी करना चाहता है। हमारे बेटे का यह एक ऐसा फैसला था जिससे हमारा परिवार निश्चित तौर पर प्रभावित होने वाला था। मोईन जो पैसे कमा रहा था वो बंद हो रहे थे और इसके अलावा यूपीएससी की तैयारी में भी सकारात्मक परिणाम की गारंटी नही थी।

मोईन को अपना फैसला खुद ही लेना था। वो हमेशा परिवार के साथ खड़ा रहा था तो परिवार को भी उसके साथ खड़े ही रहना था। मोईन अहमद दिल्ली जाकर यूपीएससी की तैयारी में जुट गया जाहिर पैसे की दिक्कत आनी थी तो मैंने कई बार रिश्तेदारो और दोस्तों से पैसे उधार लेकर मोईन को भेजे। 

मोईन अहमद मुरादाबाद के ठाकुर द्वारा के जटपुरा गांव के रहने वाले हैं। उनका परिवार बेहद संघर्षशील है। उनके पिता वली मोहम्मद काफी भावुक होकर अपने संघर्ष की कहानी सुना रहे हैं। वो कहते हैं ऐसे किसी दिन का इंतजार कर रहे थे क्योंकि दुनिया आपकी कहानी तब सुनती है जब तक आप कुछ करके दिखा नहीं देते हो, मेरे बेटे ने वो कर दिखाया है जो हमारी कल्पना से भी बाहर था।

हम तो किसी छोटी -मोटी सरकारी नौकरी से भी बहुत खुश हो जाते यह तो सबसे बड़ी है। मोईन अहमद ने तब बताया था कि मुरादाबाद से दिल्ली जाकर यूपीएससी की तैयारी करने का फैसला उनका था, जिसका उनका परिवार ने समर्थन किया था।

मैं पढ़ाई में हमेशा से अच्छा रहा हूँ और अक्सर टॉप करता था। मुझे यहां तक पहुंचने में ढाई साल लगे। पहले प्रयास में मैंने सिर्फ 3 महीने तैयारी की थी, दूसरे और तीसरे प्रयास में लगातार सुधार हुआ। तीसरे प्रयास में मुझे कामयाब होने की बहुत उम्मीद थी मगर कामयाबी नही मिली। यह वो समय था जब मुझे झटका लगा और निराशा मेरे आसपास घेरा बनाने लगी।

तब मेरे परिवार ने मुझे बहुत हिम्मत दी। 2006 से मेरे पिता बस ड्राइवर के तौर पर नौकरी कर रहे थे। यह नौकरी भी अस्थायी थी। मेरी अम्मी भी एक आम गृहणी है। हमारी रिश्तेदारी और परिवार में किसी ने ऐसी कोई कामयाबी हासिल नही की है।

यूपीएससी देश की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण परीक्षा है, इसलिए निश्चित तौर पर यह खुशी तो दे ही रही है। मैं सभी नौजवानों से यह कहना चाहता हूं कि आप सभी पूरी मेहनत और लगन के साथ पढ़ाई करें तो हिंदी माध्यम में भी बहुत अधिक संभावना है। 

मोईन अहमद ने यूपीएससी की यह परीक्षा हिंदी माध्यम से दी थी और राजनीति विज्ञान उनका मुख्य विषय था। साधारण बैकग्राउंड वाले मोईन की तमाम पढ़ाई सामान्य स्कूल से हुई। पहले तीन प्रयास में मोईन प्री तक नही कर पाए थे मगर चौथे प्रयास में उन्होंने छक्का ही मार दिया।

मोईन बताते हैं कि उन्होंने इस परीक्षा को सामान्य परीक्षा की तरह लिया और दबाव नही माना, ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मोईन को अब तैनाती मिल गई है, अब वो पश्चिमी बंगाल के पुरलिया के बड़े साहब है!

(यह लेख पत्रकार आस मोहम्मद कैफ ने लिखा है)

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