प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक पाँच सदस्यी पैनल ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा को मानव अधिकार आयोग का चेयरमैन नियुक्त किया है। पैनल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इलावा गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला और राज्यसभा में विरोधी दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी थे।
पूर्व चीफ जस्टिस अरुण मिश्रा के इलावा इंटेलीजेंस ब्यूरो के पूर्व डायरेक्टर राजीव जैन और जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश महेश कुमार मित्तल को भी मानवाधिकार आयोग के सदस्य के रूप में चुना गया है।
विरोधी दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसका विरोध किया और प्रधानमंत्री को इसके ऊपर सवाल उठाते हुए चिट्ठी भी लिखी। खड़गे का कहना है कि पिछले कुछ समय से पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, आदिवासी समुदाय और अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले बढ़े हैं ऐसे में कमसे कम एक सदस्य ऐसा होना चाहिए था जो पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, आदिवासी समुदाय या अल्पसंख्यक समुदाय से हो।
आपको बता दें कि पूर्व चीफ जस्टिस अरुण मिश्रा मोदी के करीबी माने जाते हैं। उन्होंने मोदी सरकार के पक्ष में कई फैसले सुनाए हैं। ऐसे में उनको मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष बनाए जाने पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं?
पहला सवाल तो यही है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी के प्रति वफादारी के इनाम के रूप में अरुण मिश्रा को ये पद दिया गया है? क्या आरएसएस के इशारे पर एक विशेष जाति के प्रतिनिधि के तौर पर उन्हें मानवाधिकार आयोग का चेयरमैन बनाया गया है?
आपको जानकर हैरानी होगी कि पूर्व चीफ जस्टिस अरुण मिश्रा कई बार सार्वजनिक मंचों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ कर चुके हैं।
चीफ जस्टिस जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुए उन्होंने पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक दूरदर्शी नेता बताया था और कहा था कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दूरदर्शी नेता हैं जो विश्व स्तर पर सोच सकता है और स्थानीय स्तर पर कार्य कर सकता है।”