जमात-ए-इस्लामी हिंद ने देश में सामाजिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के बढ़ते उत्पीड़न, गिरफ़्तारियों और धमकी की कड़ी निंदा की।
नदीम ख़ान और मोहम्मद ज़ुबैर का हाल ही में उत्पीड़न भारत में नागरिक स्वतंत्रता के हनन को दर्शाता है, और ये उन आवाज़ों को दबाने का प्रयास है जो सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह ठहराने की कोशिश कर रही हैं।
नदीम ख़ान और मोहम्मद ज़ुबैर दोनों ही नफ़रत भरे भाषण और नफ़रत भरे अपराधों के खिलाफ़ अपनी निडर वकालत के लिए जाने जाते हैं। चाहे वह नफ़रत भरे भाषण के खिलाफ़ नदीम ख़ान की कानूनी प्रयास हो, या नफ़रत भरे प्रचार और गलत सूचना के खिलाफ़ ज़ुबैर के अथक प्रयास हों, उनका काम और उनके जैसे मानवाधिकार रक्षकों का काम हमारे विविधतापूर्ण राष्ट्र के सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
जिस तरह से उन्हें पुलिस ने निशाना बनाया है, उससे पता चलता है कि नफ़रत भरे अपराधों, अन्याय और संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन को उजागर करने वालों को चुप कराने के लिए राज्य की शक्ति का दुरुपयोग किया जा रहा है।
ये कार्यकर्ता और उनके द्वारा संचालित संगठन, हाशिए के समुदायों की रक्षा करने, घृणा अपराधों का दस्तावेजीकरण करने और पीड़ितों को कानूनी सहायता प्रदान करने में सबसे आगे रहे हैं। उनके अथक प्रयासों ने प्रशासनिक अधिकारियों को दंगा पीड़ितों की दुर्दशा को पहचानने के लिए मजबूर किया और यह सुनिश्चित किया है कि कई मामलों में न्याय मिले।
ऐसे महत्वपूर्ण कार्य के लिए अपराधी बनाना न्याय और लोकतंत्र के आदर्शों को कमज़ोर करता है। पुलिस की मनमानी कार्रवाई, कानून के शासन की उपेक्षा को दर्शाता है। नागरिक समाज के इन अग्रणी लोगों को परेशान करने की यह प्रवृत्ति सच्चाई और जवाबदेही के लिए खड़े लोगों को दंडित करने का प्रयास है।
पुलिस की छापेमारी और तुच्छ आरोप, नागरिक समाज में भय पैदा करने और उन्हें डराने के उद्देश्य से लगाए जाते हैं। यह रणनीति न केवल राष्ट्र के लोकतांत्रिक ढांचे को खतरे में डालती है, बल्कि उत्पीड़ितों के साथ खड़े मानवाधिकार समूहों और व्यक्तियों के संकल्प को भी कमजोर करती है।
जमात-ए-इस्लामी हिंद का यह मानना है कि प्रशासन, पुलिस और राज्य एजेंसियों को निष्पक्ष रूप से कार्य करना चाहिए, संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखना चाहिए और राजनीतिक एजेंडे के लिए इस्तेमाल होने से बचना चाहिए।
जमात-ए-इस्लामी हिंद, नागरिक समाज, न्यायपालिका और सभी न्याय चाहने वाले समुदायों से इन राज्य प्रायोजित उत्पीड़न की निंदा करने का आह्वान करता है। यह मानवाधिकार रक्षकों और पत्रकारों के उत्पीड़न को तत्काल रोकने का आग्रह करता है और सत्ता के इस दुरुपयोग के लिए जिम्मेदार लोगों के लिए जवाबदेही की मांग करता है। केवल सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से ही हम लोकतंत्र की रक्षा कर सकते हैं और सभी के लिए न्याय सुनिश्चित कर सकते हैं।