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सम्पादकीय

क्या हिजाब पहनना, अपने तन को ढंकना, मुस्लिम बच्चियों/औरतों की अपनी आज़ादी नहीं है? क्या ये उनका फंडामेंटल राइट नहीं है?

मैं समझ नहीं पाता हूँ। आप क्यों अपनी सोच मुसलमानों पे थोपते हैं या थोपना चाहते हैं। जब किसी औरत की बरहना (नंगी) तस्वीर को लेके कोई मुसलमान कॉमेंट कर दे, दाढ़ी-टोपी वाला मुसलमान किसी तरह का कोई बयान दे दे तो आप ही उस औरत के नंगा रहने को उसकी आज़ादी बताते हैं।

आप ही उसके नंगा रहने को उसका फंडामेंटल राइट बताते हैं। आप ही कहते हैं उसका कपड़ा नहीं बल्कि आपकी सोच छोटी है। सिर्फ़ नंगा रहना ही आज़ादी और फंडामेंटल राइट होता है?

क्या हिजाब पहनना, अपने तन को ढंकना, मुस्लिम बच्चियों/औरतों की अपनी आज़ादी नहीं है? क्या ये उनका फंडामेंटल राइट नहीं है? क्या इस मुल्क की आईन ने उन्हें ये हक़ नहीं दिया है?

यह दो तस्वीरें हैं। पहली तस्वीर आतंकी संगठन ‘दुर्गा वाहिनी’ की महिला सदस्यों की है। जिन्हें हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। दूसरी तस्वीर कर्नाटक की है जहां मुस्लिम बच्चियां अपने हक़, अपने फंडामेंटल राइट के लिए सड़क पे उतरके लड़ रही हैं।

दुर्गा वाहिनी की महिला सदस्यों को कैम्प लगाके हथियार चलाने की ट्रेनिंग लेने से किसी शासन/प्रशासन या इस मुल्क की हिन्दू अक्सरियत परेशानी नहीं है। लेकिन मुस्लिम बच्चियों के हिजाब पहनके स्कूल जाने से शासन, प्रशासन और इस मुल्क की हिन्दू अक्सरियत को दिक़्क़त है।

हिन्दू अक्सरियत को मुस्लिम बच्चियों के हिजाब पहनने से इतनी दिक़्क़त है कि ये लोग उन बच्चियों के प्रोटेस्ट के अगेंस्ट ख़ुद सड़कों पे उतर आये हैं। जबकि मुस्लिम बच्चियां स्कूल प्रशासन और हुकूमत के ज़ालिमाना रवैय्ये से लड़ रही हैं। अपने हक़ के लिए जिद्दो-जिहद कर रही हैं। यह लोग मुसलमानों की नफ़रत में किस हदतक गिरेंगे?
नहीं, नहीं। मैं कोई तक़रीर नहीं कर रहा हूँ। मैं तो सिर्फ़ यह कहना चाहता हूँ। आपका कल्चर है बरहना (नंगा) रहने का आप रहिये। आपको किसने रोका है?

हमने कभी कहा आप नंगे मत रहिये? आप बिकनी मत पहनिये? हम होते कौन हैं कहने वाले? हम/आप एक आज़ाद मुल्क में रहते हैं। आप अपनी आज़ादी से ज़िन्दगी गुज़ारिये और हमें भी अपनी आज़ादी से ज़िंदगी गुज़ारने दीजिए। आप अपना कल्चर हम पे न थोपिये।

(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक शाहनवाज अंसारी मुस्लिम एक्टिविस्ट हैं)

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