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फ़िलिस्तीन पर इज़राइली आक्रामकता हाल में युद्ध के सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के सबसे दयनीय स्तर पर पहुंच गई है: जमात ए इस्लामी हिंद

जमात ए इस्लामी हिंद ने देश और दुनिया के मौजूदा हालात को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था, जिसमें पांच राज्यों के चुनाव परिणाम और फिलिस्तीन के मुद्दे को लेकर चर्चा हुई।

जमात इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष मलिक मोतसिम खान ने प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि, हम इन चुनावों के जीतने और हारने वालों दोनों को गंभीरता से आत्मनिरीक्षण करने और विचार करने के लिए आमंत्रित करते हैं और इस बात पर विचार करते हैं कि हमारा देश किस दिशा में जा रहा है और इसका हमारे मूल संवैधानिक मूल्यों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है. जिस तरह से हिंदी पट्टी में सांप्रदायिक और ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाई गई, वह गंभीर चिंता का विषय है।

उनहोंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हमारा देश जिस दिशा में जा रहा है इसका हमारे मूल संवैधानिक मूल्यों पर प्रभाव पड़ा है। महत्वपूर्ण समस्याओं और चुनौतियों के संबंध में बहुत कम चर्चा और बहसें हुईं। उनहोंने बताया कि जमाअत ने भाजपा को राष्ट्र निर्माण के प्रति अपनी नीतियों और दृष्टिकोण पर वास्तविक आत्मनिरीक्षण करने की सलाह दी है और अपने सांप्रदायिक एजेंडे और अल्पसंख्यकों के प्रति शत्रुता को त्याग देगी। मीडिया और चुनाव पर बात करते हुए उनहोंने कहा कि मीडिया को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में जाना जाता है और उससे अपेक्षा की जाती है कि वह देश में मौजूदा परिस्थितियों का वस्तुनिष्ठ और यथार्थवादी विश्लेषण प्रस्तुत करके लोगों का सही मार्गदर्शन करने में अपनी भूमिका निभाए।

जमाअत-ए -इस्लामी हिन्द के एक अन्य उपाध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने अहमदाबाद में जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की केंद्रीय सलाहकार परिषद् के तीन-दिवसीय बैठक (24 से 26 नवंबर 2023) में पारित प्रस्ताव पर चर्चा की। बैठक में तीन प्रस्ताव- गाजा में तुरंत स्थायी युद्धविराम, चुनावी बांड में पारदर्शिता और नौकरशाही के राजनीतिक दुरुपयोग पर चर्चा की गयी थी।

उनहोंने बताया कि पिछले 75 वर्षों से फ़िलिस्तीन पर इज़राइली आक्रामकता हाल में युद्ध के सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के सबसे दयनीय स्तर पर पहुंच गई है। आम जनों और निहत्थे नागरिकों, विशेषकर निर्दोष बच्चों और महिलाओं का नरसंहार, अस्पतालों और स्कूलों जैसी जन सुविधाओं पर अंधाधुंध बमबारी, और ऐसे अन्य लगातार क्रूर कृत्यों की मांग है कि इजरायली प्रधान मंत्री पर एक अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुकदमा चलाया जाए। इजराइल की इन बर्बर कार्रवाइयों पर तुरंत प्रतिबंध लगाकर स्थायी युद्धविराम लागू किया जाए। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय फिलिस्तीनी मुद्दे के उचित समाधान के लिए गंभीर प्रयास करे और एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की बहाली सुनिश्चित करे।

उनहोंने कहा कि पूरी दुनिया से बड़ी संख्या में निष्पक्ष विचारधारा वाले लोगों ने इजरायली आक्रामकता की निंदा और फिलिस्तीनी लोगों का समर्थन किया है और साथ-साथ पूर्वाध की तरह हमारे देश के आम लोगों, गैर सरकारी संगठनों और हक़परस्त कई मीडिया संगठनों ने भी फिलिस्तीनी लोगों का पूरा समर्थन किया है।

उनहोंने कहा कि जमाअत देश की राजनीति की स्तरता में लगातार गिरावट और लोकतांत्रिक और नैतिक मूल्यों के उल्लंघन पर गहरी चिंता व्यक्त करती है। देश की व्यवस्था पर पूंजीपतियों, अपराधियों, फिरकापरस्तों और फासीवादी ताकतों का वर्चस्व लगातार बढ़ रहा है। बैठक में यह भी महसूस किया गया कि चुनावी फंडिंग के लिए चुनावी बांड की मौजूदा गैर-पारदर्शी प्रणाली सत्तारूढ़ दल के चुनाव फंड में असाधारण वृद्धि का कारण बन रही है, जिसका दोष चुनाव के दौरान दिखाई देने लगी हैं। यह स्थिति न केवल देश में लोकतंत्र को कमजोर कर रही है, बल्कि इसके कारण सत्ता पर पूंजीपतियों की पकड़ मजबूत होती जा रही है।

उनहोंने कहा कि इस बैठक में देश के प्रमुख सरकारी संस्थानों, विशेष रूप से सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो), ईडी (प्रवर्तन निदेशालय), आयकर विभाग, पुलिस प्रशासन, नौकरशाही और राज्य के राज्यपालों के कार्यालयों आदि का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए के उपयोग पर चिंता व्यक्त की गई। बैठक में नौकरशाही के राजनीतिक इस्तेमाल से बचने और इन प्रतिष्ठित सरकारी संस्थानों की पूर्व गरिमा और स्वायत्तता को बहाल करने की मांग की गयी ।

प्रेस कांफ्रेंस में उच्च शिक्षा में मुस्लिम पंजीयन विषय पर चर्चा करते हुए जमाअत-ए -इस्लामी हिन्द के मीडिया सचिव सोहैल के के ने बताया कि 18 से 23 वर्ष के आयु वर्ग के मुस्लिम छात्रों का उच्च शिक्षा में पंजीयन में कथित कमीआयी है जो चिंता का कारण है। उनहोंने यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) और ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन (AISHE) से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति देखी गई है कि ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में मुस्लिम छात्रों का नामांकन प्रतिशत पिछली कक्षाओं की तुलना में कम है। छठी कक्षा से मुस्लिम छात्रों का प्रतिनिधित्व धीरे-धीरे कम होने लगता है और ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में सबसे कम होता है। उच्च प्राथमिक स्तर [कक्षा VI-VIII] पर कुल (सभी समुदायों) 6.67 करोड़ छात्रों के नामांकन में से, मुस्लिम लगभग 14.42% हैं। माध्यमिक स्तर [कक्षा IX-X] पर यह कुछ कम होकर 12.62% हो जाता है। उच्च माध्यमिक स्तर [कक्षा XI-XII] तक यह घटकर 10.76% हो गया है। सरकार को मुस्लिम छात्रों के वित्तीय बोझ को कम करने के लिए विशेष रूप से लक्षित छात्रवृत्ति, अनुदान और वित्तीय सहायता के अवसरों की संख्या में वृद्धि करनी चाहिए।

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