यूनिफार्म सिविल कोड (UCC) के मुद्दे पर मिल्लत टाइम्स के पत्रकार शम्स तबरेज कासमी ने दिल्ली हज कमेटी की चेयरमैन कौसर जहां को करारा जवाब दिया हैं।
कौसर जहां ने अपने आधिकारिक ट्वीटर अकाउंट के ज़रिए यूनिफॉर्म सिविल कोड का समर्थन करते हुए कहा कि, समझ में नहीं आता कि आख़िर UCC का विरोध क्यों हो रहा है? जबकि यूनिफॉर्म सिविल कोड मुसलमानों को नमाज़ अदा करने से नहीं रोकता, क़ुर्बानी करने से नहीं रोकता, अज़ान पढ़ने से नहीं नहीं रोकता, धार्मिक स्वतंत्रता में कोई बाधा नहीं डालता, इबादत में ख़लल नहीं डालता।
यह क़ानून आपको इस्लाम पालन करने से नहीं रोकता, लेकिन मज़हब के नाम पर जो कुरीतियां मुस्लिम महिलओं पर थोपी गई हैं, उन कुरीतियों से समाज और खास तौर से मुस्लिम महिलाओं के लिए सुरक्षा कवच है। यूनिफॉर्म सिविल कोड निकाह से नहीं रोकता, हां शादी को रजिस्ट्रड कराने के लिए अनिवार्य जरूर करता है. बताएं इसमें क्या गलत है?
क्या सुधारवादी क़दम उठाना ग़लत है? क्या सुधार और समाज कल्याण के लिये क़ानून लाना ग़लत है? क्या मज़हब के नाम पर चली आ रहीं कुरीतियों को रोकना ग़लत है? क्या महिलाओं को अत्याचार के ख़िलाफ मज़बूत क़ानून बनाकर देना ग़लत है? यूनिफॉर्म सिविल कोड नमाज़ से नहीं रोकता, रोज़ा से नहीं रोकता, ज़कात से नहीं रोकता, अज़ान से नहीं रोकता, मज़हब के जितने भी फ़रीज़े हैं यह क़ानून उनमें किसी भी तरह की बाधा नहीं है. फिर भी कुछ मठाधीश इसका विरोध कर रहे हैं।
कौसर जहां आगे कहती हैं कि, आख़िर इस क़ानून से समस्या क्या है? जब यह क़ानून संविधान से मिले मौलिक अधिकारों का उल्लघन नहीं करता, तब इसका विरोध क्यों किया जा रहा है. सिर्फ राजनीति के लिए? सिर्फ इसलिए कि इस क़ानून को भारतीय जनता पार्टी की सरकार में लाया जा रहा है? ठीक है लोकतंत्र में आपके पास असहमति का अधिकार है, लेकिन अपनी असहमति के साथ कुछ मज़बूत दलीलें तो दीजिए, या सिर्फ विरोध के लिए ही विरोध ही करना है?
कौसर जहां के इन सवालों का शम्स तबरेज कासमी ने करारा जवाब देते हुए कहा कि, इस्लाम केवल नमाज रोजा यानी इबादत का नाम नहीं है बल्कि जिंदगी के तमाम सेक्शन में इस्लाम पर अमल करना जरूरी है. इस्लाम का अपना फैमिली लॉ है जिसमें बताया गया है कि मुसलमानों को कैसे अपनी खानदानी और समाजी जिंदगी गुजारनी है।
UCC मुसलमानों को इस्लाम के मुताबिक जिंदगी गुजारने से रोकता है और इसमें कई काम ऐसा होगा जिसकी वजह से मुसलमानों को शरियत की नजर में गुनहगार होना पड़ेगा. जहां तक बात है इस्लाम में महिलाओं के उत्पीड़न की तो आपको दूसरे धर्म को पढ़ना चाहिए सच्चाई सामने आ जाएगी कि इस्लाम दुनिया का वाहिद धर्म है जिसने हमेशा महिलाओं को सम्मान दिया है, बराबरी दी है, खुद भारत के दूसरे धर्म में महिलाओं को प्रॉपर्टी में हिस्सा नहीं दिया जाता था, पति के मरने के बाद पत्नी को जिंदा जला दिया जाता था, बेवा को मनहूस कहा जाता था लेकिन इस्लाम ने महिलाओं को प्रॉपर्टी में हिस्सा दिया है, बेवह औरतों को जिंदा जलाने से रोककर उसको आजादी के साथ जिंदगी गुजारने का हक दिया है।
आप मुसलमानों को समझाने के बजाय अपने पीएम और पार्टी के नेताओं से पूछने की हिम्मत कीजिए कि उनको यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की जरूरत क्यों पड़ रही है, अगर मुसलमानों को इंसाफ देना चाहते हैं तो उन को रिजर्वेशन क्यों नहीं दे रहे हैं, रोज़ाना मुसलमानों को भीड़ द्वारा मारा जा रहा है उसको रोकने में हुकूमत नाकाम क्यों है? एससी एसटी के रिजर्वेशन से मुसलमानों को अलग क्यों रख दिया गया है।
पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों ने भी अपने यहां अल्पसंख्यकों के पर्सनल लॉ में किसी तरह का बदलाव और कोई छेड़छाड़ नहीं किया है फिर भारत की बीजेपी सरकार मुसलमानों को उनके पर्सनल ला पर अमल करने से क्यों रोक रही है?