2017 के चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में हिंदुस्तान-पाकिस्तान से हार जाता है। पूरा देश अफ़सोस कर रहा होता है।
इस उदासी के बीच एक ख़बर आती है कि मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में पाकिस्तान की जीत पर पटाखें फोड़े गए और जीत के समर्थन में नारे लगे। पूरा देश इस घटना पर टूट पड़ता है।
पुलिस कार्यवाही करते हुए 19 लोगों पर FIR दर्ज करती है और उन पर देशद्रोह की धारा लगती है। तब भी रमज़ान चल रहा था। उनके रमज़ान और ईद जेल में कटते है।
पूरे गांव में पुलिस दो माह तक तांडव करती है। गांव को देशद्रोहियों का गांव घोषित कर दिया जाता है।
पुलिस उन लोगों को नारेबाजी करने और पटाखा फोड़ने पर आरोपी बनाती है जिनके पास आज भी ना खाने के पैसे है, ना घर में TV. एक मुस्लिम तो देशद्रोही कहे जाने पर सुसाइड तक कर लेता है।
मीडिया पूरे मुस्लिम समाज को दोषी ठहरा देती है, TV पर मुस्लिम एंकरो को बैठा कर डिबेट की जाती है।
छह साल बाद सितंबर 2023 में कोर्ट का फ़ैसला आया। शिकायतकर्ता और 12 गवाहों ने उन्हें निर्दोष बताते हुए पुलिस (SHO) पर झूठा मामला बनाने और गांववालों को फसाने के लिए जिम्मेदार ठहराया।
कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया। पर तब तक काफ़ी नुकसान हो चुका था।
पर देश की मीडिया और मध्य प्रदेश की मीडिया ने इस घटना से कोई सबक नहीं लिया।
जुलाई 2023 में उज्जैन में महाकाल सवारी पर थूक फेंकने का आरोप लगा। एक ब्लर वीडियो के आधार पर तीन मुस्लिम बच्चों, दो नाबालिग, पर FIR हुई, उन्हें गिरफ़्तार किया गया और उसके दो दिन बाद उनका तीन तल्ला मकान ढोल नगाड़े के बीच आधे घंटे के अल्टीमेटम पर तोड़ दिया गया।
फ़िर से मीडिया ने वही ख़बर चलाई। “महाकाल यात्रा पर थूक फेंकने के आरोपियों का घर तोड़ा”
छह माह बाद शिकायतकर्ता और गवाह ने कोर्ट में बयान दिया कि वह इस घटना के बारे में नहीं जानते, ना वह उन लड़कों को पहचाने है।
उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस के दबाव में यह FIR दर्ज हुई और पुलिस ने उन्हें जहा सिग्नेचर करने को कहा उन्होंने कर दिया।
मध्य प्रदेश की मीडिया ने फ़िर भी सबक नहीं लिया।
अगस्त 2021 में उज्जैन में मोहर्रम के जुलूस के दौरान “काज़ी साहब जिंदाबाद” को “पाकिस्तान जिंदाबाद” कहा गया और दर्जनों लोगों पर NSA सहित कई धाराओं में कार्यवाही की गई।
पुलिस के आला अधिकारी यह कहते रहे कि उनके पास ओरिजनल वीडियो है जिसमें पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे पर घटना के 4 साल बाद भी पुलिस ना कोर्ट में और ना मीडिया को वह वीडियो दिखा पाई।
उज्जैन कोर्ट ने इस केस पर कहा, अगर नारा लगा भी तो यह देशद्रोह नहीं है।
मध्य प्रदेश की मीडिया ने फ़िर भी सबक नहीं लिया।
“…धार्मिक जूलूस पर पथराव, जूलूस पर पथराव, …लगे पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे, … देश विरोधी नारे, आदि…”
हर त्यौहार या अनुष्ठान के आस पास इस तरह की खबरें वॉट्सएप ग्रुपों और सोशल मीडिया पर चलाई जाती है। चाहे घटना कुछ भी हो, नैरेटिव यही होता है। पुलिस उस पर “कठोर” कार्यवाही करते हुए NSA सहित मकान तक तोड़ दिए जाते है।
अगस्त 2021 में ही इंदौर में तस्लीम चूड़ी वाले को उसके धर्म की वजह कर पीटा गया। जब मारपीट का विभत्स वीडियो सामने आया और पुलिस ने FIR नहीं लिखी, तो लोग सड़कों पर उतर आए। थाने के बाहर प्रोटेस्ट हुआ तब FIR हुई।
FIR की मांग करने वालों पर भी FIR हुई और 9 लोगों को ज़िलाबदर का नोटिस भी दिया गया।
मीडिया ने तस्लीम और मुस्लिमों को घुसपैठियों, जिहादी साबित कर दिया था।
तब के गृह मंत्री के भोपाल दरबार में तस्लीम को लेकर गैरजिम्मेदार बयान दिए गए। उसके आधार, उसके नाम और उसकी पहचान छुपाने का आरोप लगा। और लड़की को छेड़ने और लव जिहाद को बढ़ाने का आरोप लगाया गया।
तीन साल बाद, इंदौर कोर्ट ने तस्लीम को सारे आरोपों से बरी कर दिया।
मध्य प्रदेश की मीडिया ने फ़िर भी सबक नहीं लिया।
चाहे दिसंबर 2020 को उज्जैन, देपालपुर और मंदसौर में राम मंदिर के चंदे के लिए निकली गई यात्रा के दौरान हुए दंगे हो, या फिर इंदौर के महू में इंडिया की जीत के बाद हुए क्लेश।
सारी घटनाओं में एक पैटर्न है। और इन सारी घटनाओं में पुलिस की कार्यवाही संदिग्ध है। ज़ाहिर है, कुछ तो राजनैतिक दबाव होता है और कुछ इस घटना का इस्तेमाल कर अपनी निजी कुंठा निकलते है। जैसा हमने बुरहानपुर और उज्जैन में देखा।
मीडियाकर्मी इन सब चीज़ों को सबसे नज़दीक से देखते हैं, समझते है, फ़िर भी बार बार वही ग़लतीया करते है। बार बार ग़लत साबित होते है, और फ़िर से वहीं ग़लती दोहराते है।
एक संपादक ने मुझे कहा था
“जो घटना बार बार हो, और उसका पैटर्न हो, समझ लेना उसके पीछे पॉलिटिकल हैंड है। इसलिए घटना के साथ-साथ उसके राजनैतिक इंपैक्ट पर जरूर ध्यान देना।”
(यह लेख पत्रकार काशिफ़ काकवी ने लिखा है)