अल्लामा इक़बाल का एक शेर है “खुद ही को कर बुलंद इतना कि खुदा हर तक़दीर से पहले ये पूछे बता तेरी रज़ा क्या है” कहते हैं ना कि इंसान जब कुछ करने को ठान ले तो फिर दुनिया की कोई ताक़त उसको उसके मंज़िल तक पहुंचने से नहीं रोक सकती है।
ये कहानी है कश्मीर की रहने वाली 15 साल की परवीना अय्यूब की जिसने अपनी मेहमत के दम पर तक़दीर का रुख मोड़ दिया। परवीना अय्यूब का परिवार गंदेरबल ज़िला के लतिवाज़ा गांव में रहता है। कच्चे मकान में रह रहे इस परिवार का भरण पोषण “अंत्योदय अन्ना योजना” के तहत मिलने वाले राशन से होता है।
परवीना अय्यूब के परिवार के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वे उसके लिए किताबें खरीद सकें। परवीना ने अपने दोस्तों से किताबें उधार लेकर पढ़ाई की और अपनी मेहनत के दम पर 500 में से 490 अंक हासिल किए।
अपनी इस कामयाबी पर परवीना अय्यूब ने कहा कि ” मुझे बहुत खुशी हो रही है कि मैं 98% नंबर ला पायी”
परवीना ने आगे कहा कि मैंने कोई ट्यूशन भी नहीं ली थी, न मेरे पास पढ़ने के लिए किताब थे और न ही कोई नोट्स। मैंने अपने दोस्तों से किताब और नोट्स उधार लेकर पढ़ाई की।
अपने परिवार के बारे में बताते हुए परवीना ने कहा कि ” मेरे अब्बू एक मजदूर हैं इसलिए मैं अपनी पढ़ाई के खर्चे को लेकर उनके ऊपर कोई दबाव नहीं बनाना चाहता था” परवीना गंदेरबल के क़ुरहमा उच्च विद्यालय में पढ़ाई करती थी।