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सम्पादकीय

क़ुद्स डे – फ़िलस्तीन की आज़ादी का उद्घोष

रमज़ान के आख़िरी जुमे को पूरी दुनिया क़ुद्स डे यानी यरूशलम के दिन के तौर पर याद करती है। ईरान की इस्लामी क्रांति के अग्रदूत और ईरान के राष्ट्रपिता इमाम ख़ुमैनी ने आख़िरी जुमे को क़ुद्स डे के तौर पर मनाए जाने का आइडिया दिया, जो फ़िलस्तीन की आज़ादी का उद्घोष बन चुका है।

इस दिन दुनिया के मुसलमान इज़राइली ज़ायोनी शासन द्वारा फिलिस्तीन के अवैध कब्जे की निंदा करने के लिए सड़कों पर उतरते हैं और नागरिक ठिकानों पर इज़राइली बमबारी के खिलाफ अपराध की याद दिलाते हैं।

फिलिस्तीन पैगंबरों की भूमि है और मुसलमानों के लिए पहला क़िबला है।

आज से 70 साल पहले, पश्चिमी शक्तियों के समर्थन से पवित्र भूमि फ़िलस्तीन में एक शासन का गठन किया गया था, जिसे इमाम खुमैनी ने “कैंसर ट्यूमर” का नाम दिया था। पिछले 70 वर्षों में, ज़ायोनियों ने इस्लामी दिल को ग़ुलाम बना रखा है। फिलिस्तीनियों का विस्थापन 1947 में शुरू हुआ और 1948 में नकबा दिवस पर यह चरम पर पहुंच गया। उस दिन साढ़े छह लाख फिलिस्तीनियों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था और आज 40 लाख फ़िलिस्तीनी पड़ोसी देशों के शिविरों में अपनी मातृभूमि से बाहर रहते हैं। इसलिए इस्लामी विश्व को फिलिस्तीनियों के उत्पीड़न और दमन के खिलाफ चुप नहीं रहना चाहिए।

इमाम खुमैनी ने रमज़ान के अंतिम शुक्रवार को ‘अन्तरराष्ट्रीय क़ुद्स दिवस’ का नामकरण करके फिलिस्तीनी आंदोलनों को पुनर्जीवित किया। इमाम खुमैनी ने बाद में कहा कि क़ुद्स दिवस दमनकारियों के खिलाफ दमन के संघर्ष का दिन है।

इस्लामी क्रांति उस समय हुई जब फिलिस्तीन दुनिया के नक्शे से मिटने की कगार पर था। पश्चिम समर्थित ज़ायोनीवादियों के खिलाफ युद्ध में अरब राज्यों की हार से मुसलमान निराश थे। इजराइल फिलिस्तीनियों के खिलाफ लगातार जनसंहार कर फिलिस्तीन के क्षेत्रों पर कब्जे करते रहा। क़ुद्स दिवस के अस्तित्व में आने से पहले, फिलिस्तीन एक इस्लामी-अरब मुद्दा था, लेकिन उसके बाद दुनिया इजरायल युद्ध अपराधों पर केंद्रित हो गई, फिलस्तीनी बच्चों की इजरायल व्यवस्थित हत्या लाइमलाइट में आ गई।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला सैय्यद अली ख़ामेनेई ने एक बार कहा था कि ज़ायोनी शासन के खिलाफ विरोध करने में यूरोपीय लोगों और कुछ लैटिन अमेरिकी देशों का भी साथ है। यह गैर-मुस्लिम दुनिया भी पूरी तरह से ज़ायोनी दुष्ट ताकतों के बारे में जानती है, जिसे कुरान ने शैतान का नाम दिया है।

फिलिस्तीनी इंतिफादा की शुरुआत 1987 में इजरायल के कब्जाधारियों पर पत्थर फेंकने से हुई, मगर फ़िलस्तीनी उस समय निराश हो गए जब अरब के वहाबी निज़ाम ने इजराइल के साथ नर्मी दिखाना शुरू किया।

फिलिस्तीन में इस्लामिक जिहाद आंदोलन सन् 1980 में ठीक उसी समय उभर रहा था जब ईरान में इस्लामी क्रांति के प्रतिबिंब के रूप में ईरान में जन्म ले रहा था और वहाँ शाह पहलवी को हटा दिया गया था।

इंतिफादा ने इजरायल पार्टियों और वाशिंगटन और तेल अवीव के बीच भी दरार पैदा की। इंतिफादा का दमन करना इजरायल के लिए घातक बन गया। फिलस्तीन को बचाने के लिए मुस्लिमों ने आज सार्वजनिक लामबंदी की शक्ति और पश्चिम से त्रस्त बुद्धिजीवियों की अक्षमता का एहसास किया है।

इमाम खुमैनी ने एक बार कहा था कि ज़ायोनी शासन एक कैंसरग्रस्त ट्यूमर है जिसे केवल मुसलमानों और दुनिया के कमजोर लोगों के विद्रोह के साथ हटाया जा सकता है।

दिनांक 7 अगस्त, 1979 को पहले क़ुद्स दिवस का पालन करने के लिए मुसलमानों और दुनिया को खुला निमंत्रण देते हुए, इमाम खुमैनी ने कहा था कि “मैं रमजान के पवित्र महीने के आखिरी शुक्रवार को यह दिन मनाने के लिए सभी मुसलमानों को आमंत्रित करता हूं, जो भाग्य का एक दिन है और वह दिन भी बन सकता है जिस दिन फिलिस्तीनी लोगों के भाग्य को क़ुद्स दिवस के रूप में निर्धारित किया जा सकता है।

फिलिस्तीन के मुस्लिम लोगों के वैध अधिकार की घोषणा करने के लिए यह दिन फिलस्तीनियों के प्रति एकजुटता और वैश्विक समर्थन व्यक्त करता है और वास्तव में सभी अन्य उत्पीड़ित लोगों के लिए यह दिन है।”
राष्ट्रों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और नागरिक स्वतंत्रता संगठनों द्वारा जुलूसों, सम्मेलनों और रैलियों के माध्यम से देखते ही देखते इमाम की यह व्यावहारिक घोषणा स्पष्ट रूप से सीमा-विहीन स्वीकृति पा गया।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापित, इज़राइल को 1948 में पश्चिमी शक्तियों द्वारा प्रख्यापित और मान्यता दी गई थी। ज़ायोनियन, एक आंदोलन के रूप में, 1800 के अंत में विकसित हुआ, जिसने यहूदियों को एकजुट किया और फिलिस्तीन के स्थान पर अवैध राज्य के बलपूर्वक निर्माण को स्थापित करने के रूप में देखा गया, जबकि इस ज़माने में यहाँ सिर्फ 5 प्रतिशत यहूदी बसते थे। नौ शताब्दियों पहले, जबकि क्रिश्चियन क्रूसेडर यरूशलेम के यहूदियों को उनके आराधनालय में जिंदा जला रहे थे, यह मुस्लिम सलाउद्दीन थे जो अपने मुस्लिम अनुयायियों के साथ यहूदियों को यरूशलम वापस लाए और 800 साल बाद, न्यूयॉर्क के फ्लशिंग मीडो में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के भीतर, इस तरह से मुसलमानों को यहूदियों ने उनकी भलाई का बदला दिया कि उसी फ़िलस्तीन को खा गए जिसके अहाते में बसने के लिए यह मुसलमानों के सामने याचना कर रहे थे।

फ़िलस्तीन आज़ाद होगा, मस्जिद अक़्सा पर ज़ायोनी क़ब्ज़ा नहीं होगा। दो पंक्ति का संदेश है क़ुद्स दिवस। यह संदेश ज़िंदा रखने के लिए दुनिया इमाम ख़ुमैनी को हमेशा शुक्रिया कहेगी। उनकी समझ ने फ़िलस्तीन की आज़ादी को मुस्लिम फ़िरक़ो से भी बाहर निकाला। आज कोई नहीं कह सकता कि फ़िलस्तीन की आज़ादी की अगुवाई शिया मुल्क के हाथ में है। यह इमाम ख़ुमैनी की सच्चाई और इस्लामी दुनिया के लिए उनकी ईमानदारी का सबसे बड़ा नमूना बन गया है।

(यह लेखक के अपने विचार है लेखक वसीम अकरम त्यागी स्वतंत्र पत्रकार एवं दि रिपोर्ट हिंदी के संपादक है)

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