अक्सर कहा जाता हैं कि न्याय मिलने में देर हो सकती है लेकिन अंधेर नहीं हैं लेकिन सवाल यह हैं कि अगर किसी को 22 साल तक सिर्फ़ इसलिए जेल में रखा जाए कि उसके खिलाफ सबूत ढूंढ रहें हैं तो यह कौनसा न्याय हैं।
आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों को उठाकर उनकी जिंदगी बर्बाद करने के लिए जेल में डाल दिया जाता हैं तथा बूढ़े होने के बाद उनको रिहा कर दिया जाता हैं।
ऐसी ही पीढ़ा से गुजरकर जेल से 22 साल बाद बाइज्जत बरी हुए सलीम अंसारी बोले आतंकवाद जैसे इल्ज़ाम का ठप्पा लगने के बाद जिंदगी जहन्नुम बन जाती हैं।
मुंबई के भायकला इलाके के मोमीनपुरा के रहने वाले सलीम अंसारी को हैदराबाद पुलिस ने 7 जनवरी 1994 को मोमीनपुरा की मस्जिद के बाहर से गिरफ्तार किया था।
सलीम अंसारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हुए कहा कि वह मगरीब की नमाज़ पढ़कर मस्जिद से बाहर निकल रहें थे तभी उन्होंने देखा कुछ सादे कपड़ों में पुलिस वाले लोगों से पुछताछ कर रहें हैं तभी मेरे पास एक आदमी आया और बोला आपको साहब बुला रहें हैं। जैसे ही मैं उनके पास गया तो उन्होंने मुझे फौरन जीप में बैठा लिया और मुझे सड़क के रास्ते सीधे हैदराबाद ले गए।
हैदराबाद ले जानें के बाद उन्होने मुझे एक घर में बंद कर दिए तथा बोले पुछताछ करके छोड़ देंगे। पुलिस वाले पुछताछ के दौरान मुझे बहुत मारते थे तथा तरह-तरह की यातनाएं देने लगे।
सलीम अंसारी का हैं कि पुलिस ने उनपर कुल 9 बम धमाके के इल्ज़ाम लगाए। पहले पुलिस ने मुझे आंध्र प्रदेश एक्सप्रेस में हुए बम धमाके में आरोपी बनाया तथा उसके बाद नए-नए धमाकों में मेरा नाम जोड़ते गए।
सलीम के अनुसार “गिरफ्तारी के 5-6 साल तक तो मेरे केस का ट्रायल ही शुरू नहीं हुआ था। लेकिन फ़िर केस का ट्रायल शुरु हुआ और 22 साल के लंबे संघर्ष के बाद मुझे सभी आरोपों में बाइज्जत बरी कर दिया गया।
न्यूजलॉन्ड्री को अपनी पीढ़ा बताते हुए सलीम अंसारी कहते हैं कि “सलीम कहते हैं, “एक बार आतंकवाद जैसे इलज़ाम का ठप्पा लग जाता है तो जिंदगी जहन्नुम बन जाती है भले ही आप बेक़सूर साबित हो जाएं, अदालत से बरी हो जाएं। लेकिन लोग आपको शक की निगाह से ही देखते हैं। काम देने से हिचकते हैं। विदेशों की तरह हिन्दुस्तान में कोई भी कानून नहीं है कि झूठे इल्ज़ामों में फंसाये गए लोगों को कोई मुआवज़ा मिले। काश ऐसा होता तो मेरे जैसे कई बेगुनाह लोगों को एक सहारा हो जाता।