Journo Mirror
सम्पादकीय

जेल में बंद बेगुनाहों के केस लड़ने वाले शाहिद आज़मी मरकर भी नही मरे क्योंकि वह शहीद हो गये

शाहिद आज़मी ने 1992 में 15 वर्ष की उम्र में हाई स्कूल के एग्जाम ही दिये थे कि सरकार ने उन्हें टाडा के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया,जेल में पढ़ाई जारी रखी और लॉ की डिग्री हासिल की।

7 वर्ष बाद बरी हुए तो आतंकवाद के नाम पर जेल में बंद बेगुनाहों के केस लड़ उन्हें बरी कराया औऱ दुनिया को दिखाया कि मैं ही नही सैकड़ो मुसलमानों को सरकार ने फ़र्ज़ी केसों में फंसा जेल में डाल रखा है जिन्हें मैं बेगुनाह साबित कर रिहा करवाकर ही मानूंगा।

11 फरवरी 2010 को आज ही के दिन 32 साल की उम्र में कुर्ला (मुंबई) में उनके कार्यालय में चार हमलावरों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी, लेकिन शाहिद आज़मी मरकर भी नही मरे क्योंकि वह शहीद हो गये, शाहिद आज़मी सपा नेता Abu Asim Azmi के भतीजे थे मुझे शाहिद के परिजनों पर गर्व है कि उनके घर मे कोई बहादुर था जिसने जेल में रहकर भी शिक्षा हासिल कर अपने इल्म से बेगुनाहों का केस लड़ उन्हें बरी कराया औऱ आख़िर ख़ुद शहीद हो गये!

आज लाखों युवा शाहिद आज़मी की कहानी से प्रेरित होकर वक़ील बन रहे है और उन्हें दिल से खिराज़-ए-अक़ीदत पेश करते है, मैं भी उसी का हिस्सा हूँ कि शाहिद आज़मी को पढ़कर ही मैंने इल्म हासिल किया और शाहिद आज़मी की तरह जज़्बा हासिल करना चाहता हूँ,अल्लाह शाहिद भाई को जन्नत नसीब करें।

जो भी साथी मेरे इस ट्वीट को पढ़ रहे है उनसे एक अपील ज़रूर करूँगा कि शाहिद आज़मी को ज़रूर पढ़े यदि आपने शाहिद आज़मी को नही पढ़ा तो शायद आप ढंग से संघर्ष नही कर सकते अपने संघर्ष को मज़बूत करने के लिए आप शाहिद आज़मी की यह स्पीच ज़रूर सुने- 👇

साभार: ज़ाकिर अली त्यागी की फेसबुक वॉल से

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