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सम्पादकीय

उमर गौतम की गिरफ़्तारी भारत के संविधान का मज़ाक़ है। उनकी गिरफ़्तारी पर हमारा रद्दे-अमल बहुत मायूस करने वाला है

भारत एक सेक्युलर देश है। जहाँ सँविधान की बहुत-सी धाराओं और मूल अधिकारों के तहत इन्सान को अपनी पसन्द के धर्म पर अमल करने, उसका प्रचार-प्रसार करने और अपनाने की आज़ादी है।

ज़ाहिर है क़ुबूल करने और अपनाने का मामला तभी आता है जब दूसरे की तरफ़ से पेशकश हो। आजकल यह पेशकश डिजिटल भी हो गई है। गूगल पर सर्च कीजिये तो हर धर्म के बारे में पॉज़िटिव और नेगेटिव दोनों तरह की जानकारियाँ मिल जाती हैं। जिसका जी चाहे देख, पढ़ और सुन सकता है।

इस डिजिटल दुनिया के लोग अपनी खोज और रिसर्च के अनुसार अपना दीन और ईमान बदल लेते हैं।

भारत के संविधान में अपने धर्म के प्रचार-प्रसार की आज़ादी मौजूद है। दीन के प्रचार-प्रसार का लाज़िमी नतीजा धर्म परिवर्तन है।

धर्म-परिवर्तन के मामले में प्रचारक का इसके सिवा कोई फ़ायदा नहीं कि उसके अक़ीदे के मुताबिक़ कुछ सवाब और पुण्य मिल जाएगा जो उसे मरने के बाद जहन्नम के अज़ाब से बचा सकता है।

इस्लाम के अक़ीदे के मुताबिक़ ये सवाब भी इस सूरत में मिलेगा जबकि इस्लाम क़ुबूल करनेवाले को कोई दुनियावी लालच, माल या कोई पद न दिया गया हो। उसने अपनी जान और माल के बर्बाद होने के डर से इस्लाम क़ुबूल न किया हो, बल्कि उसने अपने पूरे होश व हवास व अक़ल व शुऊर से सोच-समझकर बग़ैर किसी दुनियावी ग़रज़ के दीन क़ुबूल किया हो।

पूरा इस्लामी इतिहास इस बात का गवाह है कि इस्लामी हुकूमत ने कहीं भी और किसी ज़माने में भी लालच और ख़ौफ़ से किसी को इस्लाम क़बूल करने पर मजबूर नहीं किया।

क़ुरआन में साफ़-साफ़ ऐलान किया गया कि “दीन में कोई ज़बरदस्ती नहीं” जिसपर मुसलमान हमेशा अमल करते चले आए हैं। इसलिये मौलाना उमर गौतम और उनके दावा सेंटर पर ये इलज़ाम सरासर झूठा और राजनीतिक लाभ उठाने के लिये लगाया गया है कि वो ज़बरदस्ती और लालच देकर इस्लाम क़ुबूल कराते थे।

यह बात भी ग़ौर करने की है कि मौलाना दावा सेंटर के ज़रिए यह काम पिछले 11 साल से कर रहे थे, उनका सेंटर किसी जंगल में ज़मीन के नीचे किसी तहख़ाने में नहीं था। बल्कि देश की राजधानी के मशहूर इलाक़े बटला हाउस में है। यह मुस्लिम इलाक़ा हमेशा जाँच एजेंसियों की रडार पर रहा है।

आख़िर आज 11 साल बाद योगी सरकार को मालूम हुआ? कि उमर गौतम धर्मान्तरण का कोई रैकेट चला रहे थे? जैसा कि मुझे मालूम है कि उमर गौतम साहब हिन्दू से मुसलमान बनने वाले लोगों के क़ानूनी डॉक्युमेंट्स आदि बनवाने में मदद करते थे और डॉक्युमेंटेशन के सारे काम सरकार की अदालतों में होते हैं।

ये नए-मुसलमान उनके पास जब आते तो ज़्यादातर मजिस्ट्रेट का सर्टिफ़िकेट साथ में लाते थे, मानो ये सारे काम ऐलानिया हो रहे थे और ये भारतीय संविधान के अनुसार थे।इसलिए इनकी गिरफ़्तारी भारत के संविधान का मज़ाक़ है।

इस गिरफ़्तारी पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ का यह बयान कि इन पर देशद्रोह का मुक़द्द्मा लगाया जाए और उनकी जायदाद ज़ब्त कर ली जाए, देश के संविधान की तौहीन है। एक महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति को गली, मोहल्ले के ग़ुंडों की ज़बान में बात नहीं करना चाहिये।

ये बात किसी से ढकी और छिपी नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी, संघ का राजनीतिक संघठन है। न ही इसके लिये किसी सुबूत की ज़रूरत है।

संघ का मक़सद भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है और मनु-स्मृति के क़ानूनों के मुताबिक़ राम-राज्य स्थापित करना है। संघ की 1925 से सारी कोशिश इसी मक़सद के लिये है। मुझे संघ के मक़सद से कोई लेना-देना नहीं है। यह हर सच्चे धार्मिक इन्सानी गिरोह की धार्मिक ज़िम्मेदारी है कि वो अपने धर्म के अनुसार हुकूमत का निज़ाम क़ायम करने की कोशिश करे, मगर यह कोशिश उस देश के संविधान के अनुसार होना चाहिये।

संघ को पूरा इख़्तियार है और इस समय सारे संसाधन उसके क़ब्ज़े में हैं कि वो अपने धर्म का प्रचार करे, राम-राज्य का नक़्शा पेश करे, अगर देश की जनता उनको क़ुबूल करती है तो किसी मुसलमान को क्या ऐतिराज़ हो सकता है।

लेकिन बातिल मज़ाहिब हमेशा से पीठ में ख़ंजर घोंपते हैं, डिबेट और आमने-सामने बात करने से बचते हैं। सीधे-सीधे मुक़ाबला करने से घबराते हैं, ज़ातियात पर हमला करते हैं, ग़लतफ़हमियाँ फैलाते हैं और हमेशा अपने मुँह की खाते हैं।

उमर गौतम की गिरफ़्तारी पर हमारा रद्देअमल बहुत ही मायूस करने वाला है। अभी तक हम प्रेस नोट और सोशल यू-ट्यूब चेनलों पर डिबेट कर रहे हैं। इससे पहले एक दाई की गिरफ़्तारी पर भी ऐसा ही हुआ था।

उस वक़्त तो कुछ मुस्लिम ग्रुपों ने अपनी ख़ुशी का इज़हार तक कर डाला था। हमें ये जान लेना चाहिये कि उमर गौतम की गिरफ़्तारी इसलिये नहीं हुई है कि वो कोई ग़ैर-शरई या ग़ैर-क़ानूनी धन्धा कर रहे थे। बल्कि इसलिये हुई है कि वो दीने-हक़ की तब्लीग़ का फ़रीज़ा अंजाम दे रहे थे।

देश में यह काम केवल उनका ही नहीं है बल्कि मिल्लत के हर व्यक्ति का है कि वो अल्लाह का दीन दूसरों तक पहुँचाए। उनकी गिरफ़्तारी पर हमारी ख़ामोशी भविष्य में इस्लाम की तब्लीग़ में रुकावट बन जाएगी।

मौजूदा सरकार एक व्यक्ति के ख़ुशी से कोई भी धर्म स्वीकार करने के अधिकार को संवैधानिक तौर पर ख़त्म कर देना चाहती है। हो सकता है इसके लिये वो संविधान में संशोधन करे और पार्लियामेंट में कोई बिल ले आए जिसको मंज़ूर होने से मौजूदा हालात में कोई नहीं रोक सकता। अगर ऐसा हुआ तो भारत में धर्म का प्रचार-प्रसार एक जुर्म बन जाएगा।

यह नहीं समझना चाहिये कि यह सिलसिला उमर गौतम पर ख़त्म हो जाएगा और यह केवल उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतने के लिये एक चाल तक महदूद है। नहीं, नहीं ऐसा हरगिज़ नहीं है, ऐसा सोचनेवालों को अपनी बारी का इन्तिज़ार करना चाहिये।

राम-राज्य की स्थापना के लिये ज़रूरी है कि यहाँ धर्म के प्रचार-प्रसार और धर्म बदलने पर पाबन्दी लगाई जाए, इसलिये यह सिलसिला रुकनेवाला नहीं है। अभी लोग निशाने पर हैं फिर संगठनों का नम्बर आएगा।

ज़रूरत है कि मुस्लिम संगठनों के ज़रिए संयुक्त प्लेटफ़ॉरम जैसे कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, मुस्लिम मजलिसे-मुशावरत, मिली कौंसिल वग़ैरा के तहत कोई साझा और ठोस हिकमते-अमली (Strategy) अपनाई जाए।

क़ानून के एक्सपर्ट्स का एक लीगल सेल हो जो एक-तरफ़ असंवैधानिक गिरफ़्तारियों पर उच्च न्यायालय जाए और दूसरी तरफ़ नरसिंहानंद जैसे लोगों की गिरफ़्तारियों को यक़ीनी बनाए जो समाज के लिये नासूर हैं।

टीवी चैनलों पर “धर्म का चुनाव इन्सान का मूल अधिकार है” टॉपिक पर डिबेट्स हों, इस काम में दूसरे धर्मों के धर्म-गुरु और विद्वानों को साथ लिया जाए। वे लोग जिन्होंने इस्लाम क़ुबूल किया है और वो बड़े ओहदों पर हैं उन्हें बाहर लाया जाए, उनके ज़रिए प्रेस कॉन्फ़्रेंस कराई जाए।

हिन्दू संगठनों की शुद्धिकरण तहरीक और घर वापसी के नाम पर ज़ुल्म व ज़्यादती की कारगुज़ारियाँ उजागर की जाएँ। भारतीय संविधान पर यक़ीन रखनेवाली सियासी लीडरशिप को एक किया जाए। उनके ज़रिए आवाज़ उठाई जाए और सबसे बड़ी बात यह है कि हर व्यक्ति उमर फ़ारूक़ न सही उमर गौतम बन जाए और नूरे-हक़ बनकर बातिल के अँधेरों का ख़ात्मा कर दे।

मगर उमर गौतम की गिरफ़्तारी पर यह ख़ौफ़नाक सन्नाटा और वहशतनाक ख़ामोशी, मिल्ली और मज़हबी लीडरशिप की कम हिम्मती ज़ाहिर कर रही है और मुझे डर है कि मेरे अन्देशे कहीं हक़ीक़त न बन जाएँ। इसलिये कि

उसके क़त्ल पे मैं भी चुप था मेरा नम्बर अब आया।
मेरे क़त्ल पे आप भी चुप हैं, अगला नम्बर आपका है॥

(यह लेखक के अपने विचार है लेखक कलीमुल हफ़ीज़ एआईएमआईएम दिल्ली के अध्यक्ष है)

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