Journo Mirror
सम्पादकीय

भारत के नए आतंकवादी आए दिन गर्भवती मुस्लिम औरतों को जान से मारने और उनकी कोख में पल रहे बच्चों को खत्म कर देने की धमकी देते हैं।

नए भारत के आतंकवादी बहुत बहादुर हैं। इतने दिलेर कि दो तीन दर्जन जंगली कुत्तों जैसा झुंड बनाकर वह रोज़ शिकार पर निकल जाते हैं।

फिर उनका झुंड सबसे मज़बूत शिकार खोजता है। ये वीर आतंकी दिनदहाड़े चौराहों पर कभी किसी बूढ़े 72 साल के आदमी की दाढ़ी काट देते हैं और उसे पीट-पीटकर अधमरा कर देते हैं।

वे इतने बहादुर हैं कि आए दिन गर्भवती मुसलमान औरतों को जान से मारने और उनकी कोख में पल रहे बच्चों को खत्म कर देने की धमकी देते हैं।

यह बहादुर लोग किसी मंदिर में गए प्यासे बच्चे को लातों घुसो से मारने के बाद सीना फुलाकर जब वह फेसबुक पर अपनी वीरता की वीडियो डालते हैं, तब वह जानते हैं कि उन्होंने कितना साहसी कार्य किया है।

उनके समाज की तालियां उनके कान बहरे कर देती हैं। ऐसे ही अब भारत में हर घर में रोज एक नया सेलिब्रिटी पैदा हो रहा है। जब कोई आदमी मूंछ पर ताव देकर हजारों की भीड़ को बताता है कि मैं ही वह व्यक्ति हूं जिसने एक 15 साल के बच्चे (जुनेद) को मारा था, तब 50,000 लोगों की भीड़ ताली बजाकर पूछती है, “वाउ सच में, वाह वाह, क्या आप ही वो व्यक्ति हैं?”

आप ही बताइए, छोटी बच्चियों के बलात्कारियों के लिए क्या कोई कमजोर दिल वाला देश के झंडे को पकड़कर रैली निकाल सकता है? नहीं, यह काम सिर्फ नए भारत के बहादुर आतंकवादी ही कर सकते हैं।

बाकी इनका नारा जो भी हो, आप इन्हें धर्म से न जोड़ें। कुछ करोड़ लोगों के इस आतंकी समूह को सिर्फ 40% ही लोगों का समर्थन है। हां वो बात अलग है कि बाक़ी 59% चुप रहता है।

तो क्या आप 40% के उकसावे और बाक़ी 59% की चुप्पी के लिए पूरे समाज को जिम्मेदार ठहराते फिरेंगे? स्टॉप द रांट। इंडिया इस ए सैकुलर कंट्री। एट लीस्ट 1% इस स्पीकिंग।

इस बेहूदगी के बाद यह झुंड अपने भगवान का नाम लेते हैं और सीना फुला लेते हैं। वह इतने बहादुर हैं कि उनमें कानून का अब कोई डर नहीं है, बल्कि यों कहें कि कानून उन्हें उनकी बहादुरी का इनाम देता है।

आप इन्हें नए भारत के भगत सिंह और सुखदेव से कम न समझें। भारत सरकार को मेरा सुझाव है कि हर ऐसी लिंचिंग पर अभियुक्त को कम से कम 21 तोपों की सलामी और परम वीर चक्र मिलना चाहिए।

इससे समाज का मनोबल बढ़ेगा। वैसे भी अभी छिप छिपाकर आपके मंत्री कभी इन्हें मालाएं पहना देते हैं तो कभी इनका ताबूत तिरंगे से लपेट देते हैं, कभी सरकारी नौकरी देते हैं तो कभी चुनाव का टिकट। औपचारिक तौर पर कोई ठोस कदम उठाइए, देश आपके साथ है।

(यह लेखक के अपने विचार है लेखक अलीशान जाफरी स्वतंत्र पत्रकार है)

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