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Editorial

मुस्लिम नेताओं को सभी जगह बे-इज़्ज़त किया जाता हैं, मुस्लिम नेता दो दो घण्टे खड़े रहते हैं नेता जी को हाथ जोड़के नमस्ते करने के लिए

अलीगढ़ में हुए सपा-आरएलडी+ गठबंधन की रैली में हज़ारों की भीड़ के सामने भरे मंच से धकियाए जाने के बाद सपा विधायक ‘हाजी जमीर-उ-ल्लाह’ ने मीडिया से कहा- “ये तो वो बेइज़्ज़ती थी जो दिख गयी इससे ज़्यादह बे-इज़्ज़त मुस्लिम नेताओं को कब और कहां नहीं किया जाता है? हम देखते हैं मुस्लिम नेता दो दो घण्टे खड़े रहते हैं नेता जी को हाथ जोड़के नमस्ते करने के लिए”

आप हाजी जमीर-उ-ल्लाह साहब का बयान सुनिये वो कितने बेबस नज़र आ रहे हैं। हाजी साहब दो बार विधायक रह चुके हैं। ये पहली बार नहीं है जब किसी मुस्लिम लीडर को भरे मंच पे धक्के दिया गया है। इसकी बहुत लंबी फ़ेहरिस्त है। कुछ दिन पहले मऊ के सपा नेता अरशद जमाल को भी भरे मंच पे अखिलेश यादव ने ज़लील किया था। क्या ये महज़ इत्तेफ़ाक़ है?

जिस जयंत चौधरी ने मुस्लिम विधायक हाजी जमीर-उ-ल्लाह को धक्के मारा है। उस जयंत चौधरी की पार्टी का सिर्फ़ एक विधायक उत्तर प्रदेश में है। इनका जनाधार ये है कि पिछले इलेक्शन में इनकी पार्टी 200 से ज़्यादह सीटों पे असेंबली इलेक्शन लड़ी थी। उनमें 100 से ज़्यादह प्रत्याशी वेस्ट यूपी के थे। जो वेस्ट यूपी इनकी जाति (जाट) का ‘जाट लैंड’ कहा जाता है। हैरत की बात ये है कि वेस्ट यूपी के 90+ उम्मीदवारों की ज़मानत जब्त हो गयी थी। सिर्फ़ एक उम्मीदवार इलेक्शन जीता था। वो भी इसलिए कि वो सीट इनके दादा और पिता जी की विरासत है।

जिस पार्टी की इतनी हैसियत नहीं कि वो अपने घर में इलेक्शन जीत सके उस पार्टी के अध्यक्ष को इतना तकब्बुर? अगर वेस्ट यूपी के कुछ ज़िलों के मुसलमान इन्हें वोट न दें तो ये अब ज़िन्दगी में कभी कोई इलेक्शन नहीं जीत पाएंगे।

जयंत चौधरी अपने पिता अजीत चौधरी की तरह ओवर कॉन्फिडेंस हो रहे हैं। 2012 इलेक्शन में कुछ सीटों पर चुनाव जीतने का ओवर कॉन्फिडेंस था कि अजीत चौधरी ने 2017 इलेक्शन में 200+ उम्मीदवार उतार दिया था और वही ओवर कॉन्फिडेंस उनके लिए घातक साबित हुआ।

अब जयंत चौधरी किसान आंदोलन की वजह से हवा में उड़ रहे हैं और ओवर कॉन्फिडेंस में हैं। कहीं ऐसा न हो 2017 में जिस तरह उनके पिता अजीत चौधरी जी का भ्रम टूटा था वैसे ही जयंत चौधरी का भ्रम टूट जाये। जयंत चौधरी साहब अहंकार इंसान को खा जाता है।

(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक शाहनवाज अंसारी मुस्लिम एक्टिविस्ट हैं)

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