आपको याद होगा पिछले साल दिसंबर में पाकिस्तान के ख़ैबर पख़तूनख़्वाह सूबे के करक ज़िले में एक मंदिर पर शिद्दत पसन्दों ने हमला किया था और बुरी तरह तोड़फोड़ करके मंदिर को ज़मीदोज़ कर दिया था।
ख़ैर इस मामले में पाकिस्तान सरकार और ज्यूडिशरी ने जो काम किया था वो क़ाबिल-ए-तारीफ़ था। पाकिस्तान सरकार ने कुछ ही दिनों में मंदिर के मरम्मत का काम शुरू करवा दिया था।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने ख़ुद भी ट्वीट करके इस हमले की मज़म्मत किया था और इस मामले में पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की सख़्ती के बाद दूसरे ही दिन 15 से ज़्यादह लोगों की गिरफ़्तारी हुई थी बाद में और भी गिरफ़्तरियां हुई थीं और पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर को नुक़सान पहुंचाने वालों से तीन करोड़ तीस लाख रुपए वसूलने का हुक्म दिया था।
करक ज़िले के जिस इलाके के मंदिर पर हमला हुआ था आज उसी जगह पाकिस्तान हिन्दू कॉउंसिल द्वारा ऑर्गनाइज़ प्रोग्राम में चीफ़ जस्टिस ऑफ पाकिस्तान “गुलज़ार अहमद” दिवाली सेलिब्रेट करने पहुंच रहे हैं।
मक़सद सिर्फ़ वहां की अक़्लियत (हिंदुओं) को ये एहसास दिलाना है कि ये मुल्क जितना मुसलमानों का है उतना ही हिंदुओं का भी है। आपको क़त्तई डरने की ज़रूरत नहीं है। पाकिस्तान का आईन और क़ानून आपकी तहफ़्फ़ुज़ के लिए है।
क्या ये हमारे मुल्क हिन्दोस्तान में मुमकिन है? क्या यही अदल-इंसाफ़ भारतीय अदलिया ने अपने मुल्क की अक़्लियत (मुसलमानों) के साथ किया है?
क्या हमारी बाबरी मस्जिद पर हुए आतंकी हमला करने वालों को सज़ा और उसके नुक़सान की भरपाई हमलावरों से करने का हुक्म दे सकती है अदलिया?
सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा देने के बावजूद बाबरी मस्जिद पर आतंकी हमला कर उसे शहीद किया गया। हमला करने वाले बा-इज़्ज़त बरी कर दिए गए। हद तो तब हो गयी जब उसी बाबरी मस्जिद के मलबे पर चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया (सुप्रीम कोर्ट) ने राम मंदिर बनाने का फ़ैसला सुना दिया और उस फ़ैसले पर हिन्दोस्तान की अक्सरियत (हिन्दू) और तमाम सियासी लीडरान ने बेग़ैरती और बेशर्मी के साथ ख़ुशी का इज़हार किया था।
बाबरी मस्जिद जैसी दर्जनों मसाजिद की कहानियां हैं कितनी कहानियां लिखें।
(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक शाहनवाज अंसारी सोशल एक्टिविस्ट हैं)