“अयोध्या तो झांकी हैं काशी मथुरा बाकी हैं” इस नारे को पूरा करने की लिए अब प्रशासन एक कदम और बढ़ गया हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा में मस्जिद हटाकर मंदिर निर्माण कराने की याचिका को स्वीकार कर लिया हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की पीठ ने इस याचिका की सुनवाई पर सहमति जता दी हैं तथा 25 जुलाई को सुनवाई की तारीख़ तय की हैं।
आपको बता दें कि, इससे पहले 19 जनवरी 2021 को याचिकाकर्ता की अनुपस्थिति के कारण इस मामले को खारिज कर दिया गया था।
लेकिन अब इस याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बहाल कर दिया हैं. याचिकाकर्ता ने मांग की हैं कि, श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बनी मथुरा की शाही मस्जिद और ईदगाह को हटाया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने मांग की हैं कि जब तक इस मामले के निपटारा न हो जाए तब तक हिंदुओं को सप्ताह में एक दिन और जन्माष्टमी के दिन मस्जिद में पूजा करने की अनुमति दी जाए।
आपको बता दे कि, पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, जिसके अंतर्गत यह प्रावधान है कि “बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि विवाद को छोड़कर” 15 अगस्त 1947 से पहले जो धार्मिक स्थल जिस भी धर्म का था वह उसी का ही रहेगा उसे बदला नहीं जाएगा. अगर कोई इस कानून का उल्लंघन करता है तो उसे 1-3 साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है।
अब सवाल यह उठता हैं जब कानून हैं तो फ़िर इस प्रकार की याचिकाओं को स्वीकार क्यों किया जा रहा हैं?