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सम्पादकीय

13 दिसंबर: वह दिन जब सत्ता ने जामिया के छात्रों पर लाठियां बरसाई और आंसू गैस के गोले दागे

आज 13 दिसंबर है, जामिया के छात्रों ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए एक ऐतिहासिक तारीख

ये वही दिन है जब 2019 में हम जामिया के छात्र, देश के सविंधान की बुलंद आवाज़ को लिए नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जामिया के गेट नंबर 7 से देश की संसद की ओर बढ़ रहे थे।

लेकिन हमारे रास्तों के आगे एक दीवार दिल्ली पुलिस ने खड़ी की, यह दीवार हमें रोकना चाहती थी लेकिन जामिया मिल्लिया इस्लमिया के छात्रों के हौसले इतने बुलंद थे की हम इस दीवार के एकदम करीब पहुँच कर सरकार से सवाल कर रहे थे की जिस देश को हर धर्म के लोगों ने अपने खून-पसीने की से सींचा है ओर अपनी लगन से आज़ाद कराया है उस देश में आज मुसलमानों के साथ इस कानून के ज़रिए ये भेदभाव क्यों?

ये वही दिन है जब सत्ता ने जामिया के छात्रों पर लाठियां बरसाई, आंसू गैस के गोले दागे गए, छात्रों को खदेड़ने का पूरा प्रयास हुआ, बहुत से छात्र पास के अस्पतालों में भर्ती हुए, लेकिन, ये सत्ता हमारे हौसलों को तोड़ने में कामयाब नहीं हुई, हमें डिटेन कर लिया गया, शाम होते होते जामिया के दरवाज़ों पर भीड़ बढ़ने लगी, हम जब शाम में रिहा होकर जामिया पहुंचे तो हमारे साथियों के हौसला देखते ही बन रहा था।

यह तारीख हमेशा याद की जाएगी, ये वक़्त हमेशा आबाद रहेगा, हमारे हौसले बुलंद हैं, हौसले हमेशा बुलंद ही रहेंगे।

(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक आसिफ इक़बाल तन्हा ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट हैं)

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