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दिल्ली: पुस्तक मेले में ज़ैग़म मुर्तज़ा की किताब ‘पुलिसनामा’ के दूसरे संस्करण का हुआ विमोचन

विश्व पुस्तक मेले की तमाम गहमा गहमी के बीच ज़ैग़म मुर्तज़ा की किताब ‘पुलिसनामा- जहां मुर्दे भी गवाही देते हैं’ के दूसरे संस्करण का विमोचन किया गया। इस अवसर पर लेखक ने उपस्थित जनों को पुस्तक का अंश पढ़कर सुनाया और किताब की विषय-वस्तु पर चर्चा भी की।

पुलिसनामा आसान भाषा में इन घटनाओं के माध्यम से पुलिस का कार्यप्रणाली पर रौशनी डालती है। किताब की लेखन शैली ऐसी है कि यह पुलिस के ख़िलाफ भड़ास निकालती पत्रकार की रिपोर्ट नहीं लगती बल्कि घटनाओं के माध्यम से बताती है कि हमारे पुलिसिया तंत्र में कितने झोल हैं। परोक्ष रुप से यह किताब बताती है कि देश में पुलिस रिफार्म की ज़रुरत क्यों है।

दरअसल पुलिस में काम करने वाले लोग हम-और आप जैसे मानव ही हैं। उनसे भी उसी प्रकार ग़लतियां होती हैं जैसे कि आम इंसान करता है। कई बार जानबूझकर, या फिर अंजाने में वो ऐसी हरकत कर बैठते हैं जिससे तमाम उंगलियां उनकी तरफ उठने लगती हैं। लेकिन यह समस्या का हल नहीं है। ज़रुरत तंत्र में सुधार की है।

बहरहाल, ‘पुलिसनामा- जहां मुर्दे भी गवाही देते हैं’ का प्रकाशन 2023 में राजपाल एंड संज़ प्रकाशन द्वारा किया गया। यह किताब ख़ासी लोकप्रिय हुई। पिछले वर्ष पुस्तक मेले में विमोचन से पहले ही किताब की तमाम प्रतियां बिक चुकी थीं। किताब के रिप्रिंट के बाद प्रकाशक अब इसका दूसरा संस्करण बाज़ार में लाए हैं। इसका विमोचन दिल्ली में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में राजपाल प्रकाशन के स्टॉल पर बने परिचर्चा मंच पर किया गया। इस अवसर पर प्रकाशक मीरा जौहरी राजपाल ने उम्मीद जताई कि जिस तरह किताब लोगों के बीच लोकप्रिय हुई है उसके मद्देनज़र इसका अगला संस्करण भी जल्द लाना पड़ेगा।

दूसरे संस्करण के विमोचन के अवसर पर किताब की विषयवस्तु पर चर्चा हुई। मीरा जौहरी राजपाल ने ज़ैग़म मुर्तज़ा से इस किताब के लिखने के कारण और इसमें मौजूद कहानियों के बैकग्राउंड पर सवाल भी पूछे। इस कार्यक्रम में लेखक ने किताब की पहली कहानी, ‘जहां मुर्दे भी गवाही देते हैं’ का अंश उपस्थित श्रोतागण को पढ़कर सुनाया। उन्होंने इस कहानी का बैकग्राउंड भी लोगों को बताया कि किस तरह मेरठ ज़िले की पुलिस ने अदालत में एक ऐसे आदमी को गवाह बनाकार पेश कर दिया जो पंद्रह साल पहले मर चुका था। ‘पुलिसनामा- जहां मुर्दे भी गवाही देते हैं’ में इसी तरह की 20 दिलचस्प घटनाएं संकलित हैं। साथ ही उन जगहों का भी दिलचस्प विवरण है जहां यह घटनाएं घटीं।

लेखक ज़ैग़म मुर्तज़ा जन्म उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में हुआ। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी की और पत्रकारिता के पेशे में आ गए। अपने पंद्रह वर्षीय पत्रकारीय जीवन में उन्होंने ईटीवी, हिंदुस्तान टाइम्स, राज्यसभा टीवी (संसद टीवी) और एशियाविल जैसे संस्थानों के साथ काम किया। इसके अलावा उन्होंने बतौर गेस्ट फैकल्टी दिल्ली विश्वविद्यालय और आईआईएमसी में पढ़ाया भी है। अपने करियर का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने क्राइम रिपोर्टिंग करते हुए गुज़ारा है।

‘पुलिसनामा- जहां मुर्दे भी गवाही देते हैं’ सच्ची घटनाओं पर आधारित क़िस्सों की किताब है। इस किताब में कुल 20 कहानियां हैं। लेखक इन घटनाओं का बतौर रिपोर्टर या तो ख़ुद चश्मदीद है या फिर यह घटनाएं डेस्क पर काम करते हुए साथी पत्रकारों के माध्यम से उस तक पहुचीं। पुलिसनामा- जहां मुर्दे भी गवाही देते हैं की भूमिका एसआर दारापुरी ने लिखी है जो ख़ुद यूपी पुलिस में आईजी रहे हैं। किताब का संपादन मशहूर लेखक अशोक कुमार पांडेय ने किया है।

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