द कश्मीर फ़ाइल्स के नाम पे बनी मूवी की आड़ में कश्मीरी मुसलमानों के ख़िलाफ़ खुलकर नफ़रत फैलाई जा रही है। जबकि विवेक अग्निहोत्री, अनुपम खेर आज जिस बीजेपी की सह पे कश्मीर फ़ाइल्स जैसी घटिया मूवी बनाकर मुसलमानों के ख़िलाफ़ देश में एक माहौल तैयार कर रहे हैं। वही बीजेपी 1990 में अपना समर्थन देकर जनता दल के वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाई थी।
कश्मीरी पंडितों के पलायन की जब झूटी कहानी गढ़ी गई थी तब केंद्र में बीजेपी समर्थित जनता दल की सरकार थी और वीपी सिंह प्रधानमंत्री थे। कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू था और राज्यपाल भी बीजेपी नेता जगमोहन मल्होत्रा थे जिनकी मौत मई 2021 में हुई थी।
जगमोहन मल्होत्रा को 1990 में ख़ास तौर पे कुछ महीनों के लिए कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया था। फिर 1990 के बाद उन्होंने अपने सियासी सफ़र का आग़ाज़ किया था। वो बीजेपी से राज्यसभा/लोकसभा सांसद और कई बार मंत्री भी रहे।
वो बीजेपी के इतने अज़ीज़ थे कि 1985 से 1989 तक कश्मीर के राज्यपाल तो थे ही लेकिन 1989 में कश्मीर से जाने के बाद 1990 में दुबारा उन्हें कुछ महीनों के लिए कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया था।
कश्मीर से लेकर दिल्ली तक शासन बीजेपी समर्थित थी। बावजूद इसके कश्मीरी पंडित पलायन करने को मजबूर कैसे हो गए? क्या भारत सरकार, हमारी सेना, कश्मीर प्रशासन कश्मीरी पंडितों का पलायन रोकने के लिए सक्षम नहीं थी?
जबकि उस वक़्त कश्मीर पूरी तरह केंद्र सरकार के कंट्रोल में था। साज़िशन एक अफ़वाह फैलाई गई जिसके बाद कश्मीरी पंडितों ने पलायन शुरू किया और उस पलायन के नाम पे बीजेपी को एक बहुत बड़ा मुद्दा मिला जिसको बीजेपी आज पिछले 32 सालों से भुना रही है।
ठीक वैसे ही जैसे बाबरी के नाम पे 30 साल तक भुनाती रही। आज की बात करें तो नाम-निहाद कश्मीरी पंडित जिन्होंने पलायन किया था वो कश्मीर नहीं जाना चाहते हैं। चूंकि सरकार की तरफ़ से उनको इतना सहूलियत फ़राहम है कि वो अपनी उस ज़मीन को भूल गए हैं जहां वो पैदा हुए थे।
महाराष्ट्र से अलग होने के बाद जब गुजरात सूबा बना था। उसके बाद पहला मुस्लिम नरसंहार अहमदाबाद में हुआ था लेकिन वहां के मुसलमानों ने अपना घर अपनी ज़मीन नहीं छोड़ी।
गोधरा, नेल्ली, भागलपुर, मलियाना, मुरादाबाद, हाशिमपुरा, दिल्ली, मुज़फ़्फ़रनागर जैसे हज़ारों मुस्लिम नरसंहार हुए लेकिन मुसलमानों ने न अपनी ज़मीन छोड़ी, न अपना घर छोड़ा, न कहीं पलायन किया। लेकिन कश्मीर में अफ़वाह के बाद कश्मीरी पंडितों ने पलायन शुरू कर दिया।
क्या ये उस नेल्ली नरसंहार से भी बढ़कर था जिसे दूसरी आलमी जंग के बाद का सबसे बड़ा नरसंहार कहा गया था? लेकिन इन मुस्लिम नरसंहारों पे कभी मूवी नहीं बनती, कभी इनपे खुलकर कोई बात भी नहीं करना चाहता।
आज कश्मीर फ़ाइल्स के नाम पे क्रिकेटर, नेता, अभिनेता, पत्रकार सभी खुलकर कश्मीरी मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं।
(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक शाहनवाज अंसारी मुस्लिम एक्टिविस्ट हैं)