Journo Mirror
सम्पादकीय

भारत अपने देश के करोड़ों आदिवासी, दलित, मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को उनके जन्मस्थान, समुदाय और हैसियत के आधार पर बराबरी और इंसाफ से महरूम कर रहा है।

2008 के अहमदाबाद ब्लास्ट मामले में कल 38 आरोपियों के साथ फांसी की सजा पाये सफदर नागौरी का 2017 में लिखा गया खुला खत पढ़ रहा था, सफदर ने लिखा है कि “कई केसों में एक साल से ज्यादा उनका पुलिस रिमांड और उस पुलिस रिमांड में होने वाली मारपीट और दूसरे अत्याचार असहनीय था, सफदर लिखते हैं कि “पुलिस वाले उनको कई दिनों तक जगाते थे और बिजली का करंट लगाते थे।

सफदर आगे लिखते है कि पुलिस अधिकारी उन्हें गालियां देते,उल्टा लटकाते और कई दिनों तक भूखा रखते थे। ये सब उस जुर्म को कुबूल करने के लिए किया जाता था,जिसके बारे में उन्हें जानकारी तक नहीं थी”!
पता नहीं क्यों मुझे यह खत बहुत जाना पहचाना सा लग रहा है,इस खत को पढते समय मुझे माजी का मंजर महसूस हो रहा है,वो ही मंज़र जिसमे आपको लगता है कि ऐसा तो आपने पहले भी कहीं देखा था।

कानपुर के वासिफ हैदर,मालेगांव के रियाज,मुंबई के वाहिद शेख, राजस्थान के मोहम्मद इलियास, कश्मीर के तारिक अहमद डार सहित सैकड़ों मुसलमानों को भी पुलिस ने ऐसे ही पकड़ा था,तारिक के साथ गिरफ्तारी के बाद से ही थर्ड डिग्री टार्चर शुरू हो गया था,यातना देने के तमाम तरीके आजमाएं गए। कभी 180 डिग्री पर ज़ोर से टांगे चीर दी जाती। कभी बदन के पूरे कपड़े उतार दिए जाते। बेंच पर लिटाकर सिर नीचे कर दिया जाता और टांगें बेंच पर, एक आदमी पेट पर बैठ जाता और हाथ पांव बांध दिए जाते।

इसके बाद एक आदमी पानी की भरी बाल्टी नाक के अंदर मारता और मुंह में कपड़ा ठूंस दिया जाता। पेट से कुछ मुंह के ज़रिए निकलता लेकिन कपड़ा ठुंसे होने के कारण फिर अंदर हो जाता। पैंट के अंदर चूहे छोड़ दिए जाते और नीचे से पैंट बांध दी जाती’। पुलिस की इस अज़ियत के शिकार मुस्लिमों की लिस्ट काफी लंबी है।

सिर्फ मुस्लिम ही नही मुल्क का आदिवासी तबका भी पुलिस के अत्याचारों से बचा हुआ नही है,कोपा कुंजाम को थाने में उल्टा लटका कर रातभर पीटा जाता था और उसके नीचे से मिर्च का धुंआ किया जाता था,लिंगा कोडोपी को भी जेल में चालीस दिन तक थाने के शौचालय में बंद कर के रखा जाता है और उसे करीब करीब भूखा रखा जाता है,कोपा कुंजाम को रात भर पिटाई के दौरान पुलिस उससे कहती है कि तुम गावों को दोबारा बसाने का काम बंद कर दो तो हम तुम्हें छोड़ देंगे।

कोपा से किसी अपहरण या हत्या के बारे में पुलिस कुछ भी नहीं कहती। लेकिन दो दिन बाद कोपा को एक अपहरण और हत्या के मामले में अदालत में पेश कर देती है। बाद में अदालत में जिसके अपहरण का कोपा पर अपराध बनाया गया था वह खुद अदालत में आकर कहता है कि कोपा तो मुझे अपहरण के समय बचाने के लिये नक्सलियों से झगड रहा था। लेकिन तब तक कोपा जेल में दो साल गुजार चुका है और कोपा कुंजाम का आदिवासियों को गावों में बसाने का काम बंद हो जाता है।

तारिक अहमद की तरह ही देश की कई अदालतो में गवाह इलियास,वासिफ हैदर,वाहिद शेख और दूसरे अन्य मुसलमान जो आतंकवाद के नाम गिरफ्तार किए गए थे उन्हे उनके खिलाफ लगाये गये मामलों में बेकसूर बताते हैं। फिर भी कानूनी प्रक्रिया उन्हें जेल में ही रखती है। जबकि उनके साथ अत्याचार करने वाले पुलिस अधिकारी को प्रमोशन और पुरस्कार मिलता है।

लेकिन गवाहों के कहने से क्या होता है ? गवाह तो अफजल के खिलाफ भी कोई नहीं था। लेकिन जब पुलिस, सरकार और अदालत किसी को मार डालने और किसी एक कौम को सबक सिखाने का ही फ़ैसला कर ले तो फिर गवाही ,सबूत और सच्चाई का क्या मतलब बचता है ?

जब हम किसी ज़मीन के टुकड़े को राष्ट्र ऐलान करते हैं तो उस ज़मीन के टुकड़े पर रहने वाले सभी लोगों को न्याय और बराबरी देने का वादा करते हैं। लेकिन भारतीय राष्ट्र अपने देश के करोड़ों आदिवासी ,दलित ,मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को उनके जन्म के स्थान, समुदाय और हैसियत के आधार पर बराबरी और इंसाफ से महरूम कर रहा है।

सबसे डराने वाली बात यह है कि अपने ही कमज़ोर लोगों के साथ नाइंसाफी करने का काम वही इदारे कर रहे हैं जिन पर सभी नागरिकों के लिये इंसाफ और बराबरी यकीनी बनाने की जिम्मेदारी थी।

तारिक,वाहिद शेख,वासिफ हैदर,मोहम्मद इलियास और दीगर इस लिए हुकूमत के जुल्म के शिकार हुए क्योंकि उनका ताल्लुक एक खास समुदाय से है। अगर किसी खास समुदाय के करोड़ों लोगों को ऐसा महसूस होगा कि उन्हें देश में बराबरी और इंसाफ नहीं मिल रहा है तो वो खुद पर अन्याय करने वाले लोगो के साथ क्यों रहना चाहेंगे ? सरकार की नइंसाफी इस देश के वजूद को खतरे में डाल सकती है।

बहुत से दोस्त मुझसे कह रहे हैं कि मैं अहमदाबाद की फांसी के बारे में ना लिखु और एक देशभक्त की तरह हमें अपनी सरकार का समर्थन करना चाहिये। कुछ साथी कह रहे हैं कि फांसी पर सवाल उठाना देशद्रोह है,लेकिन आपको समझना चाहिये कि आपकी ये अंधराष्ट्रभक्ति किस तरह अपने ही करोड़ों देशवासियों के साथ भयंकर नइंसाफी की बुनियाद बन रही है और आपके इस तरीकेकार से सरकार को नइंसाफी जारी रखने में आपकी मदद मिल रही है।

माजी में भी दुनिया के बहुत से मुल्कों में इसी तरह अक्सीरियत लोगों ने अपने कमज़ोर समुदायों को नइंसाफी और दर्दनाक तकलीफ सहने के लिये मजबूर किया और उसका नतीजा गृह युद्धों के शक्ल में सामने आया। इस तरह के गृह युद्धों की वजह कई मुल्क टुकड़े टुकड़े हो गये नए मुल्क वजूद में आ गये। इसलिये मुल्क को एक रखने के लिये सबको इंसाफ और बराबरी देना ही एक वाहिद रास्ता है।

आप नइंसाफी करते हुए सिर्फ सेना और पुलिस के दम पर मुल्क को कभी भी महफूज नहीं रख सकते।
लिखना के लिए तो बहुत है लेकिन मालूम है आपका हाजमा खराब है, पचा नही पाओगे, बदहजमी हो जायेगी।

(लेखक- एडवोकेट Ansar Indori दिल्ली स्थित मानवधिकार संस्था NCHRO के अधिवक्ता है,सफ़दर ने यह दर्द अपने उर्दू में भेजे गये ख़त में किया था जिसको अंसार इंदौरी ने हिंदी में लिख आपके सामने रखा है. एडिटर-ज़ाकिर अली त्यागी)

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