जमीअत उलेमा-ए-हिंद का पांचवीं दो दिवसीय प्रांतीय परामर्श असम के गुवाहाटी स्थित दारुल उलूम गारीगांव में आयोजित किया गया। इस बैठक में अपने संबोधन में जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने स्पष्ट किया कि जमीअत ने हमेशा सैद्धांतिक और वैचारिक दृष्टिकोण अपनाया है।
उन्होंने कहा कि जमीयत ने कभी भी उकसावे का सहारा नहीं लिया और न ही मुसलमानों के फायदे और नुकसान को नजरअंदाज करते हुए भावनात्मक राजनीति की है। हमारी एक स्पष्ट विचारधारा और सिद्धांत हैं और हम हमेशा इन्हीं पर कायम रहेंगे।
उन्होंने मुसलमानों को सलाह दी कि वे प्रतिक्रिया की राजनीति में शामिल होने के बजाय लगातार संघर्ष के रास्ते पर चलें और शिक्षा, संस्कृति, समाज और अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करें, क्योंकि कोई भी बिना अर्थव्यवस्था और ज्ञान के आगे नहीं बढ़ सकता।
इससे पहले जमीअत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी ने पिछली कार्यवाही पढ़ी और बैठक का संचालन किया।
बैठक में संगठनात्मक मामलों, नई सदस्यता, इस्लामोफोबिया, प्रांतों में प्रशिक्षण कार्यक्रमों और अन्य मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई और निर्णय लिया गया कि जमीअत उलेमा-ए-हिंद के विचारों और सिद्धांतों पर एक पेपर तैयार किया जाएगा, जिसके लिए एक समिति बनाई गई, जिसमें मौलाना मोहम्मद सलमान बिजनोरी, मुफ्ती मुहम्मद सलमान मंसूरीपुरी और मुफ्ती इफ्तिखार अहमद कासमी शामिल होंगे।
देश में इस्लामोफोबिया और घृणा से संबंधित अपराधों से निपटने के प्रयासों को और प्रभावी बनाने के लिए सभी राज्यों को निर्देश दिया गया कि वे अपने क्षेत्रों में घृणा से संबंधित अपराधों और इस्लामोफोबिया की घटनाओं को एकत्रित करें और इसके लिए समितियां बनाएं।
असम में घृणा अपराधों और घृणा भाषण की घटनाओं को इकट्ठा करने के लिए भी एक समिति बनाई गई, जिसके सदस्य मौलाना महबूब हसन कासमी, मौलाना मौलाना फजलुल करीम, मौलाना अब्दुल कादिर और मुफ्ती रफीकुल इस्लाम होंगे।
प्रोजेक्ट मैनेजमेंट ऑफिस (पीएमओ) के तहत भारत को दो भागों में विभाजित किया गया: इंडिया चैप्टर-1 और इंडिया चैप्टर-2। इसके अलावा, सुबाई जमीअतों को एक महीने में एक दिवसीय परामर्श बैठक आयोजित करने का निर्देश दिया गया।
यह तय किया गया कि जमीयत की छठी प्रांतीय बैठक 10-11 मई 2025 को बेंगलुरु में होगी।
यह दो दिवसीय बैठक विभिन्न सत्रों में जमीअत उलमा-ए-हिंद के उपाध्यक्ष मौलाना सलमान बिजनौरी, मौलाना बदरुद्दीन अजमल (अध्यक्ष जमीयत उलेमा असम), मौलाना आकिल कासमी (अध्यक्ष जमीयत उलेमा पश्चिमी उत्तर प्रदेश), मौलाना असरारुल हक मजाहिरी (अध्यक्ष जमीयत उलेमा झारखंड), और मौलाना रफीक अहमद मजाहिरी (अध्यक्ष जमीअत उलेमा गुजरात) की अध्यक्षता में आयोजित की गई।
अपने अध्यक्षीय भाषण में दारुल उलूम देवबंद के शिक्षक और जमीअत उलमा-ए-हिंद के उपाध्यक्ष मौलाना सलमान बिजनौरी ने व्यावहारिक नेतृत्व और ईमानदारी पर जोर दिया। उन्होंने कार्यकर्ताओं को सलाह दी कि वे जमीअत के विचारों और सिद्धांतों का अध्ययन करें और उसी के आधार पर निर्णय लें।
अध्यक्ष जमीअत उलेमा असम और पूर्व सांसद मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने अपने लिखित भाषण में जमीअत के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की सेवाओं और एनआरसी के संदर्भ में जमीअत की सफल संघर्ष पर रोशनी डाली और हालिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक मील का पत्थर करार दिया, जो जमीअत की चौदह साल की मेहनत का नतीजा था। इसके अलावा, अन्य अध्यक्षों जैसे मौलाना रफीक अहमद मजाहिरी, मौलाना मुहम्मद अकील कासमी और मौलाना नियाज अहमद फारूकी ने भी सभा को संबोधित किया।
पहले और दूसरे सत्र में राज्यों के अध्यक्षों और उच्च संगठनों या मिसाली जिलों के प्रांतीय संयोजकों ने अपने प्रांतों की संख्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत की। जमीयत की विभिन्न परियोजनाओं का भी सारांश प्रस्तुत किया गया।
ऑनलाइन सदस्यता पर एक प्रस्तुति भी हुई, जिसमें ऐप के माध्यम से जमीअत की सदस्यता लेने के तरीके को बताया गया। 112 मिसाली जिलों के वार्षिक कैलेंडर के अनुसार, पिछले छह महीनों में 5692 बैठकें आयोजित की गईं, 3541 स्थानीय इकाइयाँ स्थापित की गईं, 5996 मकतब स्थापित किए गए, और इन जिलों में समाज सुधार के तहत 4638 सुधारात्मक बैठकें और दर्से क़ुरान के 2951 कार्यक्रम तथा हदीस की तालीम के 2359 कार्यक्रम आयोजित किए गए।