बाबरी मस्जिद के बाद अब मथुरा की शाही ईदगाह का मुद्दा भी चर्चा का विषय बन चुका हैं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीते 14 दिसंबर को कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह के मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए विवादित जगह का कमीशनरेट सर्वे करने का आदेश दिया हैं, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा हैं।
इस फैसले को हिंदू पक्ष की बड़ी जीत माना जा रहा हैं, हालांकि मुस्लिम पक्ष इस फ़ैसले से काफ़ी नाराज़ हैं. मुस्लिम पक्षकार का कहना है कि यह मामला मथुरा के हिंदू मुस्लिम एकता को खराब करने के आये बाहरी लोगों के द्वारा उछाला जा रहा है।
मुस्लिम पक्ष के वकील तनवीर अहमद के मुताबिक़ 2020 में यहां कोई भी विवाद नहीं था. लेकिन कुछ बाहरी लोगों ने अपने फायदे के लिए और मथुरा का माहौल खराब करने के लिए इस मुद्दे को उछाला हैं क्योंकि यहां आरती और अज़ान की आवाज़ एक साथ आती है।
इस मुद्दे पर सपा प्रवक्ता अमीक जामई का कहना है कि, बहुसंख्यक नस्लवादी वर्चस्व मुसलमानों को हर स्तर पर ज़लील, प्रताड़ित और बेइज्जत करने का सिलसिला जारी रख रहा है, इसी माइंडसेट को सर उठा कर राजनीत, मीडिया, सामाजिक जीवन में जीने वाले मुसलमान को रहमोंकरम पर देखने से सैडिस्टिक प्लेज़र मिलता है।
मथुरा शाही ईदगाह विवाद दोनों समाज ने मिलके 1968 में अदालत के सामने हल कर लिया था कितने महान लोग रहे होंगे इक़रारनामां संलग्न है फिर सर्वे का आदेश हुआ, बाबरी मस्जिद के फ़ैसले में प्लेसेज़ ऑफ़ वॉर्शिप एक्ट साफ़ था कि कोई और विवाद इंटरटेन नहीं होगा, बाबरी राम मंदिर सूट मे दोनों पक्ष को मनाने के लिए बनी मिडियेट कमेटी के तत्कालीन जज और श्री श्री रवि शंकर कहा है अब?