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मेवात: रेहड़ी, पटरी और ठेला लगाने वाले दंगा पीड़ितों को मौलाना अरशद मदनी ने दी 40 लाख रुपये की मदद, लाभान्वित होने वालों में हिंदू-मुसलमान दोनों शामिल

देश में नफरत के माहौल और मुसलमानों को नूह और अन्य स्थानों पर सामूहिक बदले का निशाना बनाए जाने पर जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कड़ी प्रतिसिक्रया व्यक्त करते हुए कहा कि आरएसएस हिन्दुस्तान में हिंदू और मुसलमानों के बीच शांति, एकता, प्रेम और सदभाव को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता से पीछे हट गया है।

मीडीया से बातचीत में मौलाना मदनी ने कहा कि देश में आपसी समझबूझ और भ्रम को समाप्त करने के लिए उनकी मोहन भागवत से जो बात हुई थी, आरएसएस उस पर अब क़ायम नहीं रहा।

उन्होंने कहा कि आरएसएस के नेताओं के बयानों से स्पष्ट है कि वो सांप्रदायिक सौहार्द नहीं चाहते। उन्होंने हर हिन्दुस्तानी के हिंदू होने के बयान को भी निर्रथक बताया।

उन्होंने कहा कि हर हिन्दुस्तानी ‘हिंदू’ नहीं बल्कि ‘हिन्दी’ (भारतीय) है। अध्यक्ष जमीअत उलम-ए-हिंद ने विपछी गठबंधन ‘इंडिया’ का भी पूर्ण समर्थन करते हुए कहा कि देश में नफरत के माहौल की समाप्ति के लिए रानीतिक बदलाव आवश्यक है।

अगर विपक्षी दल एकजुट नहीं रहे तो स्वयं उनका अस्तित्व भी ख़तरे में पड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह कर्नाटक में सांप्रदायिक शक्तियों को हराया गया, उसी तरह यह राष्ट्रीय स्तर पर भी आवशयक है।

उन्होंने हरियाणा के मेवात में रेहड़ी पटरी और ठेला लगाने वाले 200 पीड़ितों के लिए 40 लाख रुपये की सहायता राशि का चैक जारी किया जिससे लाभान्वित होने वाले मुसलमान के साथ-साथ हिन्दू भी है।

मौलाना मदनी ने कहा कि हमें बताया गया कि रेहड़ी ठेला सात हज़ार रुपये में और बेचने के लिए सामान पर चार से पाँच हज़ार रुपये खर्च होते हैं, परन्तु हमने फैसला किया कि हर प्रभावित को प्रति व्यक्ति बीस हज़ार रुपये दिए जाएं। मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद पहले दिन से राहत और कल्याण कार्यों में अग्रणी रही है और हमने यह काम कभी धर्म के आधार पर नहीं बल्कि मानवता के आधार पर किया है और यह सिलसिला अभी भी जारी है। चाहे भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं हों, मुसलमानों की समस्याएं, सांप्रदायिक हिंसा, निर्दोष लोगों की क़ानूनी लड़ाई हो या असम नागरिकता का मसला हो, जमीअत उलमा-ए-हिंद ने सब के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाने, समय पर सहायता पहुंचाने और उनके ज़ख़्मों पर मरहम रखने को अपना कर्तव्य समझा।

मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमने नूह में भी इस परंपरा को बरकरार रखा और प्रभावितों की धर्म और वर्ग के भेदभाव के बिना सहायता की जारही है। अध्यक्ष जमीअत उलमा ने एक बार फिर कहा कि सांप्रदायिक तत्व यह समझते हैं कि दंगों द्वारा मुसलमानों को नुक़सान पहुंचाएंगे लेकिन वह यह नहीं समझते कि इससे देश का नुकसान होता है और देश की छवि को भी भारी क्षति होती है। नूह में 28 अगस्त को कड़ी सुरक्षा में पुनः यात्रा निकाली गई लेकिन कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं हुई, हम इसे एक अच्छा क़दम समझते हैं, लेकिन इस घटना से एक बार फिर साबित हो गया कि अगर प्रशासन और पुलिस ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाए तो कभी दंगा नहीं हो सकता।

उन्होंने मांग की कि दंगा रोकने के लिए पुलिस और प्रशासन को उत्तरदायी बनाया जाए। मौलाना मदनी ने कहा कि इस सिलसिले में कभी प्रभावी क़दम नहीं उठाया गया जिसके कारण सांप्रदायिक तत्वों को बल मिलता रहा, जिन्हें अब कानून और न्यायालय का भी कोई डर नहीं रह गया। मौलाना मदनी ने दंगों के बीच उपद्रवियों द्वारा इबादतगाहों को निशाना बनाने की भी निंदा करते हुए कहा कि किसी भी धर्म की शिक्षा में यह शामिल नहीं। जो लोग धर्म का प्रयोग नफरत और हिंसा फैलाने के लिए करते हैं वो अपने धर्म के सच्चे अनुयायी नहीं हो सकते हैं।

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