भारत में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर काफ़ी समय से सवाल उठते रहें है, क्योंकि जिस तरीक़े से पत्रकारों पर लगातार हमले हो रहें है उन्हें लेकर पत्रकार समुदाय काफ़ी चिंतित है।
ताज़ा मामला छत्तीसगढ़ के युवा और बहादुर पत्रकार मुकेश चंद्राकर की निर्मम हत्या का है, जिसके बाद से पत्रकार संगठनों ने एक बार फ़िर से अपनी सुरक्षा को लेकर आवाज़ उठानी तेज़ कर दी है।
आपको बता दें कि, मुकेश चंद्राकर ने भ्रष्टाचार से जुड़े एक मामले को उजागर किया था, जिसके बाद उनकी बेरहमी से कुल्हाड़ी से मारकर हत्या कर दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक, उनके लिवर के 4 टुकड़े हो गए थे. 5 पसलियां टूटी हुई थीं, सिर में 15 फ़्रैक्चर थे, हार्ट फटा था और गर्दन टूटी हुई मिली थी।
डॉक्टरों का कहना है कि हमनें अपने 12 वर्ष के करियर में ऐसी हत्या नहीं देखी है।
आपको बता दें कि, मुकेश चंद्राकर से पहले भी कई पत्रकारों को सच्ची पत्रकारिता करने के जुर्म में मारा गया है. पत्रकार साकेत आनंद के मुताबिक़, ये कुछ पत्रकारों के नाम हैं, जिन्हें बीते सालों में सिर्फ और सिर्फ अपना काम करने के कारण मार दिया गया। सिर्फ काम। आपमें से ज्यादातर लोग इनका नाम नहीं जानते होंगे, क्योंकि ये सेलिब्रेटी नहीं थे।
पत्रकार सेलिब्रेटी नहीं होता। वो सिर्फ अपना काम करता है- पत्रकारिता। कोई भी सरकार नहीं चाहती है कि उसका भ्रष्ट सिस्टम सबके सामने आए। इसलिए ईमानदारी से काम करने वाले पत्रकारों पर कभी गाड़ियां चढ़वा दी जाती हैं, तो कभी सीधे सिर में गोली।
सच्ची पत्रकारिता करने के जुर्म में मारे गए कुछ पत्रकारों की सूची इस प्रकार है 👇🏻
शशिकांत वारिशे (महाराष्ट्र)
सुभाष कुमार (बिहार)
अविनाश झा (बिहार)
रमन कश्यप (यूपी)
सुलभ श्रीवास्तव (यूपी)
चेन्ना केसेवुलु (आंध्र प्रदेश)
शुभम मणि त्रिपाठी (यूपी)
राकेश सिंह (यूपी)
संदीप शर्मा (MP)
शुजात बुखारी (कश्मीर)
चंदन तिवारी (झारखंड)
सुदीप दत्ता (त्रिपुरा)
शांतनु भौमिक (त्रिपुरा)
गौरी लंकेश (कर्नाटक)
किशोर दवे (गुजरात)
राजदेव रंजन (बिहार)
जगेन्द्र सिंह (यूपी)
साकेत आनंद का कहना है कि, लिस्ट बहुत लंबी है। बहुत ऐसे मामले हैं जो सामने ही नहीं आ पाए। कई मामलों में मौत की वजह सामने नहीं आ पाई।
सरकारें हमेशा से ऐसा करती आई हैं। ये दरअसल एक के जरिए कइयों की आवाज एक साथ दबाने की कोशिश होती है।
जब पत्रकारों का एक बड़ा तबका सरकार के चरणों में दंडवत लेटा हुआ है, उस वक्त ग्राउंड पर रहने वाले रही कुछ लोग असल काम कर रहे होते हैं। फिर भी सरकारें चाहती हैं कि वे कुछ भी ना करें, सवाल न उठाएं, और सिर्फ कॉन्टेंट बनाएं। सरकार इनाम भी देगी।