उर्दू ज़बान को ख़त्म करने की साज़िश को लगातार अंजाम दिया जा रहा है, जिसके तहत उर्दू अकादमी की बदहाली, उर्दू मीडियम स्कूल की अनदेखी एवं उर्दू शिक्षकों को बहाली को रोका जा रहा है।
इसके साथ-साथ अब उर्दू ज़बान के सबसे पुराने प्रकाशन संस्थान मकतबा जामिया, जिसने कई दुर्लभ किताबें प्रकाशित की और उनको बेहद कम मूल्यों पर पाठकों को उपलब्ध कराया उसको भी खत्म करने की साज़िश रची जा रहीं हैं।
ताज़ा जानकारी के मुताबिक़, मकतबा जामिया लिमिटेड’ की उर्दू बाज़ार (पुरानी दिल्ली) स्थित शाखा बंद हो गई. जिसके कारण वहां काम करने वाले एकमात्र कर्मचारी को वापस घर भेज दिया गया है।
आपको बता दें कि, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के हिस्से के तौर पर काम करने वाला यह लगभग 100 साल पुराना संस्थान घोर लापरवाही और उपेक्षा का शिकार है।
सोशल एक्टिविस्ट सैयद उबेदुर्रहमान के मुताबिक, देश में उर्दू खत्म होती जा रही है और अगर आपको इसका उदाहरण चाहिए तो पुरानी दिल्ली के उर्दू बाजार में मकतबा जामिया की जामा मस्जिद शाखा का बंद गेट ही काफी है, डेढ़ महीने से भी ज्यादा समय से शाखा बंद है और इसका एकमात्र कर्मचारी वापस घर भेज दिया गया है।
मकतबा जामिया, जामिया मिलिया विश्वविद्यालय की प्रकाशन शाखा है, जब विश्वविद्यालय की स्थापना इसके संस्थापकों द्वारा की गई थी जो स्वतंत्रता आंदोलन के नेता भी थे, तो उन्होंने विश्वविद्यालय और इसके स्कूलों के विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए पाठ्यक्रम विकसित करने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की तर्ज पर मकतबा जामिया या यूनिवर्सिटी प्रेस की स्थापना की।
मकतबा ने बेहतरीन काम किया है. इसने गांधी, जाकिर हुसैन, प्रेम चंद जैसे कई अन्य शीर्ष पुरस्कार विजेताओं को प्रकाशित किया।
हालांकि पिछले दो दशकों में, हजारों खिताबों वाले मकतबा जामिया को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया और उसे धीमी मौत मरने के लिए छोड़ दिया गया. इसके कर्मचारियों को सालों से वेतन नहीं दिया गया है और इसकी सभी शाखाएं बंद होने के कगार पर हैं।