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सम्पादकीय

लोकतांत्रिक देश में बोलने की आज़ादी होनी चाहिए, लेकिन बम ब्लास्ट कर बेगुनाहों की जान लेने की आज़ादी नही होनी चाहिए: ज़ाकिर अली त्यागी

भोपाल से मोदी जी की सांसद हिंदुओ से चाकूओं पर तेज़ धार लगा तैयार रखने की अपील कर नरसंहार के लिए उकसा रही है, लव जिहाद के नाम पर गाज़र मूली की तरह काटने की तरफ़ इशारा कर रही है।

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक मुल्क़ है बोलने की आज़ादी होनी चाहिए, लेकिन बम ब्लास्ट कर मासूमों, बेगुनाहों की जान लेने की आज़ादी भी नही होनी चाहिए, नरसंहार के लिए उकसाने की आज़ादी भी नही होनी चाहिए।

संविधान के अनुयायी पिछले कई वर्षों से UAPA के तहत सलाखों के पीछे है, एक पीड़िता के घर जाकर ग्राउंड रिपोर्ट करने जा रहे कप्पन भी 27 महीने से जेल में है, एक चीफ़ मिनिस्टर के ख़िलाफ़ शिक़ायत दर्ज कराने वाला शख्श उम्र क़ैद की सजा काट रहा है, एक पत्रकार को जिला बदर कर दिया गया, यदि आप अब भी कहते है कि कानून नही तो हैरत होगी, क्योंकि जो भी जेलों में है सभी कानून के तहत जेलों में है।

बस फ़र्क़ ये है कि जेलों के बंदी या तो मुस्लिम है या दलित, आदिवासी. नरसंहार की अपीलकर्ता खुले घूम रहे है और आये दिनों हथियार तैयार रखने व तेज़ धार लगाने की अपील कर रहे है।

महामहिम राष्ट्रपति जी आप उस क़ानून को रिस्टोर कर सकते है जो धर्म जाति के आधार पर गिरफ्तारी को ना रोकता हो?

(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक ज़ाकिर अली त्यागी स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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