वक़्फ़ संशोधन बिल के खिलाफ पांच करोड़ मुसलमानों द्वारा जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) को ईमेल भेजे गए। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, विभिन्न राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय मुस्लिम संगठनों और प्रमुख मुस्लिम हस्तियों ने JPC के सामने बिल के हर बिंदु पर अपनी मजबूत दलीलें पेश कीं और लिखित दस्तावेज़ जमा कराई। इसके बावजूद, सरकार ने अपने रुख में बदलाव करने के बजाय बिल को और अधिक कठोर और विवादास्पद बना दिया।
लोकतांत्रिक देशों में किसी भी कानून या बिल को संसद में पेश करने से पहले उन लोगों से सलाह ली जाती है, जिन पर इसका सीधा असर पड़ता है। लेकिन इस सरकार का रवैया शुरू से ही तानाशाही वाला रहा है। तीन कृषि कानून संसद से पास किए गए, लेकिन किसानों से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया गया। अंततः, किसानों के मजबूत आंदोलन ने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया।
वक़्फ़ कानून में इससे पहले जितनी बार भी संशोधन हुए, मुस्लिम नेतृत्व से सलाह मशवरा लिया गया और उनकी ठोस राय और सुझावों को ध्यान में रखा गया।
लेकिन इस बार, संसद में बिल पेश करने से पहले मुस्लिम नेतृत्व से कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया। जब संसद में इस बिल का विपक्षी दलों ने जोरदार विरोध किया, तब 31 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति (JPC) बनाई गई। हालांकि, सत्तारूढ़ दल के बहुमत वाली इस समिति ने केवल खानापूर्ति करने और बिल को और अधिक कठोर बनाने का काम किया। मुसलमानों की तर्कपूर्ण राय और उचित सुझावों को पूरी तरह खारिज कर दिया गया, यहां तक कि समिति में विपक्षी दलों द्वारा प्रस्तावित 44 संशोधनों को भी अस्वीकार कर दिया गया।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विपक्षी नेताओं के साथ-साथ बीजेपी की सहयोगी पार्टियों के प्रमुखों से भी मुलाकात कर उन्हें वक़्फ़ संशोधन बिल पर मुस्लिम समुदाय के तर्कपूर्ण रुख से अवगत कराया। इसी संदर्भ में, तेलुगू देशम पार्टी (TDP) के प्रमुख, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता चंद्रबाबू नायडू से बोर्ड के एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने विजयवाड़ा में मुलाकात की। इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व बोर्ड के महासचिव मौलाना फजलुर रहीम मुजद्दिदी ने किया।
उन्होंने मुख्यमंत्री को वक़्फ़ संशोधन बिल पर मुस्लिम समुदाय की गंभीर आपत्तियों से अवगत कराया। इसी दौरान देशभर में मुस्लिम संगठनों ने बड़े-बड़े विरोध प्रदर्शन आयोजित किए और इस बिल का पुरजोर विरोध किया।
इन तमाम प्रयासों के बावजूद, मुस्लिम समुदाय की तर्कपूर्ण आपत्तियों को अनदेखा कर दिया गया और NDA सरकार वक़्फ़ संपत्तियों को हड़पने और नष्ट करने के अपने एजेंडे पर पूरी तरह अडिग है। बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति में NDA की वे सहयोगी पार्टियां भी साथ दे रही हैं, जो खुद को धर्मनिरपेक्ष और न्यायप्रिय बताती हैं और मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन भी प्राप्त करती हैं।
मुस्लिम समुदाय वक़्फ़ संशोधन बिल को समुदाए के खिलाफ सीधे हमले के रूप में देखता है। यह साफ़ है कि बीजेपी की राजनीति सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और “लड़ाओ और राज करो” की नीति पर आधारित है। हालांकि, उसकी सहयोगी पार्टियों को सोचना चाहिए कि वे इस एजेंडे का कितना समर्थन करेंगी।
इन हालात में, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, विभिन्न धार्मिक व सामाजिक संगठनों और देश के तमाम न्यायप्रिय नागरिकों के साथ मिलकर अपने लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार का उपयोग करते हुए 17 मार्च को जंतर मंतर पर धरना देने जा रहा है। उम्मीद है कि इस प्रयास का कुछ असर पड़े और हम अपना पक्ष संसद सदस्यों को समझाने में सफल हो सके।