उपराष्ट्रपति को लेकर उठे नए विवाद से याद आया कि बात ज्यादा पुरानी नहीं है, भारत को ‘आज़ाद’ हुए (2014 के बाद वाली आज़ादी) ज्यादा समय नहीं बीता था, अभी ‘नए भारत’ का नारा भी नहीं दिया गया था, कि इसी दौरान गणतंत्र दिवस (2015) आ गया।
2014 में मिली आज़ादी के बाद पहली बार महामानव, प्रधानमंत्री की हैसियत से राजपथ पर गणतंत्र का जश्न मनाने के लिए आए थे, इस भव्य आयोजन में उन्होंने अपने दोस्त बराक ओबामा को भी आमंत्रित किया था।
गणतंत्र के इस जश्न में चूंकि महामानव, प्रधानमंत्री की हैसियत से हिस्से ले रहे थे तो उन्हें प्रोटोकाॅल का ज्यादा इल्म भी नहीं था। इसलिए उन्होंने उस वक्त भी झंडे को सलामी दे दी, जब उन्हें सलामी नहीं देनी थी।
वहीं पर मौजूद तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने प्रोटोकाल का पालन करते हुए झंडे को सलामी नहीं दी, बस फिर क्या था! नए-नए आज़ाद हुए ‘देशभक्तों’ को मौक़ा मिल गया कि वो अपनी जहालत का प्रदर्शन करते हुए डाॅ. हामिद अंसारी को देशद्रोही साबित करें. कई रोज़ तक यह बहस चली, सुरेश चव्हाणके जैसी नफ़रती फफूंद तो हामिद अंसारी को मुंह भर-भर अनाप शनाप बकने लगे। जब यह तमाशा कई दिन तक चलता रहा, तो आखिरकार राष्ट्रपति भवन को प्रेस रिलीज जारी कर ‘देशभक्तो’ को प्रोटोकाॅल बताना पड़ा।
राष्ट्रपति भवन ने तो बता दिया, लेकिन महामानव ने अपने ‘भक्तों’ को यह तथ्य आज तक नहीं बताया कि उस रोज़ प्रोटोकाॅल के अनुसार ग़लती पर कौन था।
खैर! यह वाकिया जैसे तैसे करके गुज़र गया, अब 21 जून आया जब 2014 में मिली आज़ादी के बाद ‘विश्वगुरु’ की ताक़त का अंदाज़ा लगाकर संयुक्त राष्ट्र ने दिसंबर 2014 में निर्णय लिया कि 21 जून को योग दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
प्रधानमंत्री बनने के बाद महामानव द्वारा भारत को विश्व में पहचान दिलाने की यह पहली ‘उपलब्धि’ थी। अब तक मीडिया भी पूरी तरह गोदी मीडिया में तब्दील होकर सत्ता के चरणवंदन में लग चुका था।
खैर अब योग दिवस के लिए महामानव ने पूरे ज़ोर शोर से ढोल पीटा, एक बेहतरीन ‘इवेंट’ तैयार किया गया। योग दिवस बीत ही रहा था कि इसी दौराना किसी देशभक्त ने आरोप लगाया कि राज्यसभा टीवी, योग दिवस की कवरेज इसलिए नहीं दिखा रहा क्योंकि उपराष्ट्रपति डाॅ. हामिद अंसारी हैं। ‘देशभक्तों’ ने दुबारा से हामिद अंसारी की देशभक्ति को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया।
कुछ ‘देशभक्त’ तो इतने ज्यादा आक्रोशित थे कि उन्होंने डाॅ. हामिद अंसारी को वह सब कह दिया जो भाजपा सांसद द्वारा कुंवर दानिश अली को कहा गया है। राष्ट्रपति भवन को फिर से प्रेस रिलीज जारी कर ‘देशभक्तों’ के आरोपों का खंडन करना पड़ा। तब कहीं जाकर देशभक्तों का गुस्सा शांत हुआ।
लेकिन इसके बावजूद महामानव ने अपने भक्तों द्वारा अपने ही देश के उपराष्ट्रपति पर लगाए लांछन और गालियों पर जुबान नहीं खोली।
अब आते हैं अमृतकाल के उप राष्ट्रपति पर, जगदीप धनकड़ साहब उपराष्ट्रपित हैं उन्होंने दो दिन के भीतर ही एक-एक कर विपक्ष के कई दर्जन सांसद निलंबित कर दिए तो नाराज़ सांसद धरने पर बैठ गए. इसी बीच एक सांसद ने मिमिक्री कर दी, इससे सत्तापक्ष इतना ‘आहत’ हुआ कि महामानव ने उपराष्ट्रपति को फोन करके ढांढस बंधाया।
सत्तापक्ष के नेताओं ने इस मिमिक्री को जाट गौरव का अपमान बताया तो आचार्य प्रमोद कृष्णन ने इसे “सड़क छाप” करार दिया। यह अमृतकाल का कमाल ही है कि यहां मिमिक्री से सत्तापक्ष के महामानव और उनके भक्तों की भावना आहत हो जाती है, लेकिन डाॅ. हामिद अंसारी पर अनाप शनाप कुछ भी अनर्गल टिप्पणी करना देशभक्ति का प्रमाण मान लिया गया था, क्योंकि तब अमृतकाल नहीं था।
(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)